Monday, April 28, 2014

प्रियंका की कसमसाहट

Yogesh Mishra

April 28, 2014

प्रियंका गाँधी (वाड्रा) की नाराज़गी आजकल चर्चा-ए-आम है। नाराज़गी जायज़ है। आख़िर दाँव पर पति राबर्ट वाड्रा की खोखली प्रतिष्ठा जो है। वाड्रा को देश का सबसे ईमानदार व्यावसायी का प्रमाणपत्र देने के लिए पहले कांग्रेस के तथाकथित बड़े नेता आगे आए, परंतु कुछ ना हुआ। फिर माँ सोनिया गाँधी और भाई राहुल गाँधी ने एड़ी-चोटी का ज़ोर लगाया, नतीजा सिफ़र रहा। अन्ततः प्रियंका को पति के बचाव के लिए राजनैतिक अखाड़े मे कूदना पड़ा।

प्रियंका कहती हैं कि उनके परिवार ने देश के बहुत कुछ किया, यहाँ तक कि कुर्बानी भी दी। कैसी कुर्बानी? और किसने दी? जहाँ तक इंदिरा और राजीव गाँधी का सवाल है, दोनों ने देश की खातिर जान नही दी बल्कि उनकी हत्या हुई। इंदिरा ने पहले भिंडरावाले जैसे आतंकवादियों को बढ़ावा दिया और फिर उसकी महत्वाकांक्षाओं का शिकार बनीं।

राजीव ने श्रीलंका के आंतरिक मामलों मे पड़ते हुए वहाँ पनपते लिट्टे को समाप्त करने के लिए ज़बरदस्ती शांति सेना भेजी और उनकी कूटनीतिक चूक का ख़ामियाजा ना केवल उन्हें वरन पूरे देश को भुगतना पड़ा। शांति सेना लिट्टे का कुछ भी बिगाड़ नही पाई, हाँ, इस आपरेशन मे सैकड़ों जवानों शहीद ज़रूर हो गए। अन्ततः भारत ने शांति सेना को वापस बुला लिया। पूरी दुनिया मे भारत का मज़ाक बन गया था। एक दिन लिट्टे ने राजीव से अपना हिसाब चुकता कर लिया। आज श्रीलंका भारत की अपेक्षा चीन से अधिक नज़दीक है और और गाहे-बगाहे हमें आँखें तरेरती रहती है। प्रियंका इस सत्य से भली-भाँति वाकिफ़ हैं परंतु इसे स्वीकारने की उनकी हिम्मत नही है।

रही बात देश के लिए कुछ करने की, तो नेहरू-गाँधी के प्रधानमंत्रित्व काल मे देश को क्या मिला? जितने वर्ष उन्होने इस देश मे राज किया उतना वक्त किसी और को मिला होता तो भारतवर्ष का कायाकल्प हो जाता। और यदि नेहरू-गाँधी परिवार ने कुछ अच्छा किया भी तो उसे गिनाने की क्या ज़रूरत है, क्या भारत उसका कर्ज़दार था? अजीब बात है, पहले स्वयं को सेवक निरूपित करते हैं और फिर अहसान गिनाते हैं! अलबत्ता जब तक यह परिवार गद्दी पर रहा, इसने सैकड़ों न्यास (ट्रस्ट) खड़ा कर यह सुनिश्चित कर लिया कि प्रियंका और राहुल की आने वाली कई पुश्तें सात सितारा जिंदगी जी सके।

नेहरू-गाँधी के अलावा देश मे जितने भी प्रधानमंत्री हुए, उनके परिवार को तो कोई नही जानता। यहाँ तक कि लोग यह भी भूल जाएँगे कि मनमोहन सिंह भी कभी प्रधानमंत्री थे। क्यों? क्योंकि किसी ने अपने परिवार के लिए पैसा कमाने वाले न्यासों (ट्रस्ट) की स्थापना नही की। अगर सभी नेहरू-गाँधी की तरह होते तो भारत मे प्रियंका और राहुल की फौज खड़ी हो जाती और लोगों की जिंदगी बदतर।
प्रियंका को देश सेवा मे इतनी ही रूचि है तो पहले उन्हें त्याग का मर्म समझना पड़ेगा। बिना किसी पद के, ना केवल सोनिया व राहुल, बल्कि प्रियंका, उनके पति और बच्चे वर्षों से सरकारी सुविधाओं का अन्धाधुन्ध इस्तेमाल कर रहे हैं। यह ऐशो-आराम छोड़ना होगा। महज दो-तीन लाख रुपए मे प्रारंभ किए गए कारोबार को पाँच वर्षों मे 325 करोड़ रुपए के साम्राज्य मे तब्दील करने वाले वाड्रा से प्रियंका को ईमानदार के इस शॉर्टकट का राज पूछना होगा ताकि अन्य देशवासियों का भला हो सके। यदि वाड्रा वाकई बेईमान हैं तो प्रियंका को पहल करते हुए अपने पति के खिलाफ पुलिस मे शिकायत कर देना चाहिए।

केवल पाँच साल मे चंद दिन ही साड़ी लपेटकर गिने-चुने लोगों से पड़ोसियों की तरह वार्तालाप करने से कुछ हासिल नही होगा। दम है तो मैदान मे आना चाहिए। प्रियंका यदि इस मुगालते मे हैं लोगों को (या शायद केवल कांग्रेसियों को) उनमे इंदिरा की झलक दिखती है तो उन्हें यह समझना होगा कि वर्तमान मे भारत की जनता तरक्की से कम कुछ नही चाहती - लोक-लुभावन बातों का समय लद गया, जल्द ही राजनीति मे परिवारवाद का भी यही हश्र होगा। बिना प्रतिभा के कोई नही टिकता, बाप-दादा की कमाई कब तक काम आएगी..

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