July 20, 2014
रायपुर शहर के एक हिस्से की सड़कों पर बने स्पीडब्रेकरों को तोड़ा जा रहा है। कारण राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का आगमन। सरकार कहती है राष्ट्रपति को झटका नही लगना चाहिए इसलिए स्पीडब्रेकर तोड़ना ज़रूरी है। भई वाह! पूरा जीवन उन्हीं स्पीडब्रेकरों पर आम जनता झटका खाती है तब तो सरकार कुछ नही करती। लेकिन कुछ लम्हों के लिए राष्ट्रपति क्या आ रहे हैं, पूरा नज़ारा बदल दिया जा रहा है, वो भी दिखावे के लिए।
खैर स्पीडब्रेकर बनाने का मुख्य प्रायोजन था सड़क हादसों मे कमी लाना परंतु जब तक राष्ट्रपति आकर चले नही जाते, स्पीडब्रेकर नही बनेंगे। अर्थात इस दरम्यान होने वाली सड़क दुर्घटनाओं से सरकार को कोई सरोकार नही होगा। राष्ट्रपति तो वैसे भी बड़े आदमी हैं। उनकी अपनी कार के नीचे कोई आ जाएगा तो भी उन्हें झटका नही लगेगा। इसलिए जिसे मरना है, वो मरे अपनी बला से।
अजीब हालात हैं। देश का करोड़ो रुपये फूँककर राष्ट्रपति केवल एक घंटे के लिए रविशंकर शुक्ला विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह मे शामिल होने के लिए पधार रहे हैं। चूँकि उनके पास वक्त कम होगा इसलिए वे छात्रों को उपाधि भी नही बाटेंगे। अरे भाई, वे इतने व्यस्त हैं तो उन्हें बुलाया क्यों? उनके आने से किसी को क्या हासिल होगा? उनकी ऐसी कोई छवि अथवा प्रतिभा भी नही है जो छात्र उन्हें देखने के लिए लालायित हो उठें और अपने जीवन मे कोई भारी बदलाव ले आएँ। फायदा कुछ होना नही है, बल्कि हानि ही हानि है। उनके आने का मतलब सड़कें जाम, कुछ लोगों की सड़क हादसों मे मौत और सरकारी ख़ज़ाने की बर्बादी।
अब जब देश मे बदलाव की बात उठ ही गई है तो लगे हाथ कुछ घटिया परंपराओं को भी बदलने की प्रक्रिया प्रारंभ होनी चाहिए। इसलिए सबसे पहले संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्तियों और सतासीन नेताओं को किसी भी कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाने की प्रथा ख़त्म होनी चाहिए। जनहित मे यदि राष्ट्रपति, राज्यपाल अथवा सत्ताधारी नेता कुछ करते हैं तो यह उनका दायित्व है, देश पर अहसान नही।
इनसे वह सारी सुविधाएँ भी छीन लेनी चाहिए जो उन्हें जनता से दूर करती है। यदि ये जनता की सेवा के लिए इतना लालायित हैं तो अपने खर्चे स्वयं वहन करें, देश के ख़ज़ाने के दम पर अययाशी करना बंद करें।
दरअसल जनता सड़कों पर बने स्पीडब्रेकरों के झटके तो बर्दाश्त कर लेती है, लेकिन जब उसे अपने द्वारा चुने हुए लोगों से मिलने के लिए राजनैतिक व प्रशासनिक स्पीडब्रेकरों पर से गुज़रना पड़ता है तब वह टूट जाती है और बिना अपनी बात कहे दम तोड़ देती है..