योगेश मिश्रा
फरवरी 26, 2017
अखिलेश यादव,
तुम भी कमाल करते
हो मियां! स्वयं तो अपने बाप मुलायम सिंह यादव की साइकिल पर राहुल गाँधी को बैठाकर
उत्तर प्रदेश का चुनावी पर्यटन (#election #tourism) करा रहे हो और
गधे की पैरोकारी की उलाहना दे रहे हो अमिताभ बच्चन को! गए तो तुम अपने बाप पर ही हो। तुम समाजवादी कभी अपनी बात पर अडिग नहीं रहते। पहले तुम गंभीरता से गधे की बात कर रहे थे फिर अचानक
कहने लगे कि वो तो होली वाला मजाक था। तुम्हारे चक्कर में मेरे सहित आधा देश गधे
पर समीक्षा लिखने बैठ गया और नरेंद्र मोदी तो बाकायदा बहराइच की रैली में सात मिनट
का निबंध ही सुना डाले।
आध्यात्म में
मोक्ष और राजनीति में सत्ता को अंतिम लक्ष्य माना गया है। समर्पण दोनों में चाहिए।
पांच वर्ष के मुख्यमंत्रित्व काल में तुमने अपने अन्दर सत्ता के प्रति समर्पण भाव
कूट-कूट कर भर लिया है। तुम्हें यह बोध हो गया कि संसार मिथ्या है और घर-परिवार, दोस्त-यार केवल
सत्ता प्राप्ति के साधन। इसलिए चुनाव पूर्व ही तुम अपने पूरे खानदान के साथ
गुथ्थम-गुथ्था हो गए। अमर सिंह को भी ठिकाने लगा दिया। अब अमिताभ बच्चन पर नज़र
टेढ़ी कर रहे हो।
तुम्हारे बाप का
साथ देने अमिताभ बच्च्न सालों तक अपनी पत्नी जया के साथ उत्तर प्रदेश के
गली-मोहल्लों में समाजवादी मंचों पर “मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है..” गाकर
ठुमकते–मटकते रहे, लेकिन तब शायद तुम्हारी नज़र में वे घोड़ों के साथ थे और अबके
चुनाव वे तुम्हारे लिए नाच नहीं रहे तो उनके 30 सेकंड का
विज्ञापन का हवाला देकर तुम उन्हें गधों का हिमायती बता रहे हो? ज़रा अमिताभ बच्चन
से भी तो पूछो कि उनकी नज़र में घोडा कौन है और गधा कौन।
तुम्हारे तेवर
देखकर तो अनिल अम्बानी और सुब्रत राय सहारा के भी पसीने छूट रहे हैं। या फिर यह
केवल दिखावा है? हो सकता है तुमने अम्बानी और सहारा - दोनों से पहले ही चुनावी
निवेश करा लिया हो। तुम तो हो ही चतुर।
चलो थोड़ी और गंभीर
बातें करें। उत्तर प्रदेश में जिसने भी राज किया, चाहे अल्प काल के लिए सही,
गुंडाराज ही पनपाया। देश की सबसे बड़ी जनसँख्या वाले प्रदेश को बदहाल बनाए रखने में
किसी राजनीतिक दल ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ा। समाजवादियों से उम्मीद करना तो वैसे
भी बेमानी है।
भारत में कांग्रेस
के बाद मुसलमानों के सबसे बड़े हिमायती बनकर उभरे तुम्हारे बाप – मुलायम सिंह यादव
जिन्हें मुल्ला मुलायम की उपाधि मिली हुई है। लेकिन मुसलमानों में तरक्की की भूख
पैदा करने के बजाए कांग्रेस, समाजवादी और अन्य अवसरवादी राजनीतिक दल उनके अन्दर अल्पसंख्यक
होने की हीन भावना और हिन्दुओं के प्रति नफरत भरने लगे। जिस उर्जा को मुसलमान अपने
हुनर को तराशने और पूरे कौम के विकास में लगा सकता था उसे उसने अपने उस अस्तित्व को बचाए रखने में लगा दिया जिसपर कभी कोई खतरा था ही नहीं। मुसलमान उग्र, आक्रोशित
और भयभीत है क्योंकि सत्तालोलुप राजनीतिक दल हमेशा उसे छलते रहे।
तो अखिलेश!
मुसलमान तुम समाजवादियों और कांग्रेसियों के लिए केवल वोट-बैंक हैं। लेकिन यदि
मुसलमान आने वाली पीढ़ी को अपनी आक्रामकता को उच्च शिक्षा प्राप्त करने, जीवन स्तर
सुधारने और आर्थिक रूप से स्वावलंबी होने में लगाने के लिए प्रेरित करेगा तो तुम
इस परिवर्तन को घोड़े से गधे बनने की उलट प्रक्रिया कहोगे।
राजनीति विरासत में मिल गई,
बाप ने राजपाट बनाया, इसके चलते चुनाव भी जीत गए और बन गए मुख्यमंत्री। मुफ्त की सत्ता
और जनता का पैसा, वादे पर वादे और धरातल पर विकास नदारद – फिर भी चाहते हो जनता
तुम्हें चुने, आखिर क्यों? ऐसा क्या तीर मार लिया तुमने पांच साल में कि जनता
तुम्हारी वाहवाही करे? जिन्हें टेबलेट, मोबाइल, कंप्यूटर आदि बाँटोगे वे दूसरे प्रदेश जाकर घर
बसा लेंगे क्योंकि पांच साल में न तो तुमने उन्हें सुरक्षा दी और न ही काम करने के
लिए आबोहवा। तुम तो एक एक्सप्रेस हाईवे बनाकर अपनी पीठ थपथपा रहे हो जबकि कुछ लोग सत्ता
पाते ही अपने प्रदेश को आईटी हब बना देते हैं, परन्तु फिर भी तुम घोड़े और वे गधे!
तुमने हाथ भी मिलाया तो
किससे – राहुल गाँधी से? शायद दोनों स्वघोषित युवराज हो, इसलिए? जिस कांग्रेस के
लिए देश का नहीं, राहुल गाँधी का विकास चिंतनीय विषय है, उससे उत्तर प्रदेश के भले
की उम्मीद कैसे कर सकते हो? और दोनों युवा मिलकर ऐसा क्या गुल खिला दोगे कि उत्तर
प्रदेश का वारा न्यारा हो जाएगा? तुम चाणक्य को अपनी राजनीतिक सूझबूझ से शर्मिंदा
कर रहे हो और राहुल गाँधी अपनी नासमझी से। बाप ने पूरे उत्त्तर
प्रदेश में समाजवाद की जड़ें फैलाई लेकिन तुमने 403 में से 105 विधान सभा सीटें कांग्रेस
को देकर अपनी दरियादिली दिखा दी। जब बाप ने कहा कि बेटा तू तो अपनी ही जड़ें
खोद रहा है तो तुमने भी जैसे कह दिया कि – पापा! आप क्या समझोगे नए ज़माने का गठबंधन।
आप तो अमिताभ बच्चन के दोस्त हो जो गधे का विज्ञापन करते हैं...
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