Thursday, April 24, 2014

ये मुसलमानों के ख़ैरख़्वाह..


Yogesh Mishra

April 24, 2014


आज़म ख़ान जैसे लोग जब भारतीय सेना को धर्म के नाम पर बाँटने की कोशिश करते हैं तब समझ मे आता है कि नेता सांप्रदायिकता का जहर किस हद तक फैलाने की काबिलियत रखते हैं। आज़म ख़ान के एक बयान से सेना को तो कोई फ़र्क नही पड़ा लेकिन आम मुसलमान, जिसकी जिंदगी मदरसों और मस्जिदों के इर्द-गिर्द घूमकर ख़त्म हो जाती है, अवश्य प्रभावित हुआ।

और यह अक्सर होता रहा है। आज़म ख़ान जैसे सत्तालोलुप लोग दशकों से अपने ओहदे, साख और पहुँच के माध्यम से मुसलमानों को भ्रमित करते आए हैं। आश्चर्य है कि सुधारवादी मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग भी इन कट्टरपंथियों के प्रभाव को कम करने मे असफल रहा है।

दरअसल आज़म ख़ान से सौहार्दपूर्ण बातों की अपेक्षा बेमानी है क्योंकि उनकी ओछी राजनीति को मजबूती प्रदान कर रहे हैं उनके अपने नेता मुलायम सिंह। यही कार्य लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और कांग्रेसी कर रहे हैं। भाजपा अब तब इस खेल से अछूती रही है क्योंकि देश का मुसलमान उसपर भरोसा नही जता पाया है।

भारतवर्ष मे केवल हिंदुओं को बहुसंख्यक माना गया है तथा अन्य धर्मों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है। अल्पसंख्यकों मे भी मुसलमानों की संख्या सबसे अधिक है। शायद हिंदुओं के बाद देश मे सबसे अधिक मुसलमान ही हैं।

परंतु आश्चर्य की बात है कि असुरक्षा की भावना सबसे अधिक मुसलमानों मे ही है जबकि अन्य अल्पसंख्यक धर्म शायद ही असुरक्षा का राग अलापते हैं। कारण साफ है - अलगाववाद व कट्टरवाद की राजनीति करने वाले हमेशा से मुसलमानों को सुरक्षा के नाम पर डराते रहे हैं। ये वही ज़हरीले लोग हैं जिनका स्वयं का धर्म है, ना ईमान। इन्हीं लोगों ने मुसलमानों को धर्म व अज्ञानता के ऐसे दायरे मे बाँध रखा है जिसे लाँघने वाले को काफ़िर का दर्जा दे दिया जाता है।

ऐसे लोग सभी राजनैतिक दलों मे पाए जाते हैं। इनका ध्येय मुसलमानों का विकास नही, शोषण है। वरना क्या कारण है कि मुसलमान, अनुसूचित जाति अथवा जनजाति वर्ग के लोगों की अपेक्षा कहीं ज़्यादा उन्नत होते हुए भी, या तो विश्वनाथप्रताप सिंह और मुलायम सिंह यादव जैसे लोगों के लिए आरक्षण का मुद्दा बनकर रह जाता है अथवा कांग्रेस के लिए सुरक्षित वोट-बैंक।


दरअसल ध्रुवीकरण की राजनीति करने वाले देश को तब तक खोखला करते रहेंगे जब तक मुसलमान स्वयं को अल्पसंख्यक मानते रहेंगे। जहाँ तथाकथित अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों के बीच की खाई पटी, अनेक राजनैतिक दलों को अपना बोरिया-बिस्तर बांधना पढ़ेगा क्योंकि उनके पास कोई मुद्दा ही नही बचेगा अपना अस्तित्व बचाए रखने के लिए।  

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