Raipur, July 27, 2015
नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने दिल्ली चुनाव मे विकास के बजाए अरविंद केजरीवाल की बातें की और परिणाम भाजपा के विपरीत गया। अब बिहार मे भी मोदी कुछ इसी तरह का सुर अपना रहे हैं। नीतीश कुमार की आलोचना करके बिहार की जनता के हृदय मे स्थान बनाना कठिन कार्य है।
नीतीश कितने भी अवसरवादी राजनेता हों, परंतु उनके द्वारा बिहार मे किए गए कार्यों को अनदेखा नही किया जा सकता। नीतीश कोई सोनिया अथवा राहुल नही हैं जिनके बारे मे जनता मज़ाक बर्दाश्त करेगी। बिहार की जनता को चाहिए विकल्प और वो भी इतना मजबूत जो नीतीश को टक्कर दे सके।
भाजपा मे नेताओं की भरमार है। बिहार से तो एक से बढ़कर एक धुरंधर नेता हैं। समय चयन का है। मोदी को चेहरा बनाकर विधान सभा चुनाव लड़ना बचकाना है। दिल्ली की तर्ज पर ऐन वक्त मे किरण बेदी जैसे मुख्यमंत्री प्रत्याशी को उतरना भी ठीक नही है। जनता पचा नही पाएगी।
अनंत कुमार को बिहार का चुनावी प्रभार दिया जाना भी समझ से परे है। दिल्ली की हार के बाद अमित शाह के पास अवसर था कि वे बिहार मे अपनी प्रतिभा दिखाते और सिद्ध करते कि उनकी उत्तर प्रदेश की रणनीति कोई हवा-हवाई सोच का परिणाम नही थी वरन एक ठोस व धरातल मे किए गये कार्य का प्रतिफल थी।
एक सोच यह उभरती है कि अमित शाह राष्ट्रीय अध्यक्ष होकर प्रदेश चुनाव की कमान क्यों संभालेंगे? दूसरी सोच यह है कि जब चुनौती छोटी अथवा बड़ी नही होती तो अमित शाह क्या इस बात से डर रहे हैं क़ि बिहार के परिणाम यदि दिल्ली जैसे आए तो दल मे अन्य नेता उनसे इस्तीफ़ा माँगना प्रारंभ कर देंगे?
कारण जो भी हो, मोदी और शाह की जोड़ी बिहार मे तभी सफलता के परचम लहराएगी जब वे दोनों अपनी-अपनी प्रतिभा का भरपूर दोहन करेंगे और जीत के लिए पूरी ताक़त झोंक देंगे..
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