योगेश मिश्रा
दिसम्बर ०८, २०१५
बात-बात में बात बढ़ गई है। कुछ लोगों ने
अपना सम्मान क्या लौटा दिया, विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र व एकमात्र धर्मनिरपेक्ष देश
भारत - जिसे ज्ञान, संस्कृति और सहनशीलता का पैमाना माना जाता रहा है - अचानक
असहिष्णु हो गया। और लांछन लगाने वालों की भीड़ पर जरा गौर तो फरमाइए - ऐसे-ऐसे
चेहरे हैं जिन्होंने अपनी राजनीतिक जड़ें मजबूत करने के लिए सदैव सहिष्णुता को
दरकिनार कर, जाति व् धर्म का दांव खेल, समाज को विखंडित करने का कार्य किया है।
आश्चर्य है
असहिष्णुता का राग अलापने वालों ने कभी इतिहास में झाँककर देखने की जहमत नहीं उठाई।
इस देश को पहले मुगलों ने लूटा, फिर अंग्रेजों ने। इन लुटेरों के कहर से संपत्ति
बची, ना आबरू। धार्मिक स्थलों के साथ-साथ जनमानस की भावनाओं पर इन आततायीयों ने
ऐसा आघात पहुँचाया कि किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएँ। करोड़ों हिन्दुओं को मुसलमान
और इसाई बना दिया गया। भाई-भाई को दो धर्मों में बाँट दिया गया। अब सहनशीलता का
इससे बड़ा प्रमाण और कहाँ मिलेगा?
आजादी के बाद देश
में सबसे अधिक वर्षों तक कांग्रेस ने राज किया। इस दल ने सबसे ज्यादा चिंता की
गरीबों और मुसलमानों की, परन्तु उनके लिए किया कुछ भी नहीं। कांग्रेस छह दशकों तक
गरीबी हटाओ चिल्लाती रही और इस दौरान लाखों गरीब मिट गए। आजादी के बाद मुसलमानों
का एक बड़ा तबका भी गरीबी से जूझ रहा था। तिस पर तुर्रा, कांग्रेस ने उन्हें
अल्पसंख्यक का दर्जा देकर विशेष कृपा दिखाने का प्रयास किया। परन्तु अंततः हुआ
क्या? लाखों की तादाद में हुनरमंद युवा मुसलमान सही अवसर व् मार्गदर्शन के आभाव
में इधर-उधर भटकते रहे। बहुतों ने गलत मार्ग चुन लिया। चुनाव दर चुनाव, कांग्रेस
उन्हें बरगलाती रही कि उनका उससे बड़ा खैरख्वाह कोई नहीं, केवल वो ही एकमात्र
राजनैतिक दल है जो उनके दिन संवारेगी। अफ़सोस, आज भी गरीबी जस की तस है और मुसलमान
राजनैतिक दलों के मोहरे बने हुए हैं। इतना सब करके भी यदि कांग्रेस अस्तित्व में
है तो क्या यह देशवासियों की सहिष्णुता नहीं है?
सबसे आश्चर्य की
बात है हिन्दुस्तान में यदि कोई गर्व से स्वयं को हिन्दू कहता है तो स्वघोषित
धर्मनिरपेक्ष दल व् तथाकथित बुद्धिजीवी उसे आँखें तरेर कर सांप्रदायिक करार देते
हैं। हिंदुत्व इस धरा में केवल धर्म ही नही वरन एक संस्कृति है, देश की आत्मा है,
अक्षुन्न सत्य है, परन्तु कुछ लोग इसे संकीर्णता व् नकारात्मकता के चश्मे से देखते
है और वैसे ही परिभाषित करते हैं। खोखले आदर्शवाद का ढोल पीटने वालों की यही जमात
कहती है भारतवर्ष को हिन्दू राष्ट्र बनाने का षड्यंत्र किया जा रहा है। अजीब बात
है, भारत सदैव से हिन्दू-बाहुल्य राष्ट्र रहा है परन्तु शायद ये लोग इस सत्य से
अनभिज्ञ हैं और इसलिए हिन्दुओं पर प्रहार कर रहे हैं। इनकी इस मूढ़ता को भी देश के अस्सी
करोड़ से ज्यादा हिन्दू तवज्जो नहीं दे रहे हैं फिर भी इन्हें यहाँ असहिष्णुता नज़र
आ रही है। इन सभी को यह समझना आवश्यक है कि यह देश सदा से हिन्दुस्तान था, है और
रहेगा। शायद इन्हें हिन्दुस्तान में हिन्दू शब्द भी सांप्रदायिक नज़र आता होगा।
इनका बस चले तो ये हिन्दुस्तान से हिन्दू शब्द निकालने की भी मांग कर डालें।
विश्व में सबसे
अधिक हिन्दू धर्मं का उपहास किया जाता है। भारत में ही हिन्दू देवी-देवताओं के नाम से
अनेकों किस्से, कहानी व् चुटकुले प्रचलन में हैं। विदेशों में तो
देवी-देवताओं के चित्रों को बड़े बड़े दर्जी (फैशन डिज़ाइनर)
अन्तः वस्त्रों में तक उकेर देते हैं। हिन्दू इन सभी बातों की अनदेखी कर देते हैं क्योंकि उन्हें
विदित है कि ऐसी हरकतें हिंदुत्व का कुछ नहीं बिगाड़ सकतीं। यह सहिष्णुता,
यह लचीलापन और यह उदारवाद ही हिन्दू धर्म के सनातन होने का परिचायक है। लेकिन क्या
अन्य धर्म के लोग अपने पवित्र संतों, देवी-देवताओं व् ग्रंथों का अपमान बर्दाश्त
कर पाएंगे? कभी नही। यहाँ तक कि इसाई व् मुसलमान बाहुल्य देश भी अपने धर्मों के
साथ इस तरह का खिलवाड़ सह नहीं पाएंगे।
फिर इतना हो-हल्ला क्यों?
असहिष्णुता की बातें क्यों? और यह सब भी तब घट रहा है जब भारतीय जनता पार्टी ने
बहुमत की सरकार बनाई है। जिस नरेंद्र मोदी को विपक्षी दल सांप्रदायिक कहते थे, उसे
जनता ने देश का प्रधानमंत्री बना दिया। अपने १८ महीने के कार्यकाल में मोदी ने
धर्म छोड़कर अन्य सभी मुदों पर खुलकर बातें की। यह मोदी ही है जिन्होंने मुसलमानों
को धर्म के आधार पर नही बल्कि देश के नागरिक होने के नाते सुविधा देने की बात कही,
समानता की पैरवी की और विकास पर बल दिया।
धर्मनिरपेक्षता
की आड़ में जनता को धोखा देने वाले राजनैतिक दल मोदी के इस स्वरुप से भयभीत हैं।
मोदी जनता से सीधे संवाद स्थापित कर रहे हैं। उनकी जनता से नजदीकी विपक्षी दलों को
नागवार गुजर रही है। विरोधियों को यह समझना आवश्यक है कि मोदी कोई चमत्कारी पुरुष नही हैं। जनता उन्हें व्
उनके कार्यों को तौल रही है। यदि वे जनता की कसौटी में खरे नही उतरे तो भविष्य में
उन्हें भी नकार दिया जायेगा।
परन्तु विरोधी
कसमसा रहे हैं। उन्हें डर है कि यदि मोदी कामयाब हुए तो उनकी सत्ता वापसी की राह
कठिन हो जाएगी। शायद यही कारण है कि सत्ताधारी दल के कुछ बड़बोले सांसदों की बातों
को विपक्षी ज्यादा ही तूल दे रहे हैं और देश में माहौल खराब होने की बात कर रहे
हैं।
दरअसल असहनशील समाज नहीं, राजनैतिक
दल हैं। निम्न वर्ग तो रोजी-रोटी कमाने में पिस रहा है। मध्यम वर्ग सम्पन्नता का
दिखावा करने के लिए उधारी के मायाजाल में फंसा हुआ है। उच्च वर्ग समय की कमी से
जूझ रहा है। इस वर्ग के लिए धन सर्वस्व है, चरित्र गौण। इन तीनों वर्गों में असहिष्णुता
का ज़हर राजनैतिक दल घोलते हैं। समाज में लोभ, विद्वेष व् असुरक्षा की भावना का ऐसा
संचार किया जा रहा है जिसमे जनसामान्य उलझा हुआ है और अवसरवादी अट्टहास कर रहे हैं।
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