योगेश मिश्रा
July 29, 2016
रायपुर
सार्वजानिक रूप से सरकार की आलोचना करने वाले बड़बोले नौकरशाहों पर केंद्र ने लगाम कसने की ठान ली है। अब यदि बाबुओं ने भावातिरेक में टेलीविज़न, सोशल मीडिया, कैरीकेचर या अन्य संचार माध्यमों में दायरे से बाहर जाकर सरकार के खिलाफ जहर उगला तो उन्हें कड़ी कार्रवाई झेलनी पड़ सकती है। नरेन्द्र मोदी सरकार का इशारा साफ़ है - प्रशासनिक स्तर पर कसावट लाने के लिए वह नौकरशाहों पर अनुशासन का डंडा चलाने से भी गुरेज नहीं करेगी। इस आशय से केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने 18 जुलाई 2016 को सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र प्रेषित कर 12 अगस्त 2016 तक राय मांगी है।
पिछले डेढ़ दशक में नेताओं के साथ-साथ सिविल सेवकों की भी टेलीविज़न, सोशल मीडिया और अन्य प्रसार माध्यमों में उपस्थिति बढ़ी है। कई बार ख़बरों में बने रहने के लिए इन नौकरशाहों ने अपनी सीमाएं लांघकर ऐसे-ऐसे बयान दिए कि संबंधित सरकारें भी सकते में आ गईं। दो वर्ष पहले मोदी ने प्रधानमंत्री पद सँभालते ही मंत्रियों और अफसरों को अनुशासन की घुट्टी पिलाते हुए साफ़ कर दिया था कि उनके राज में ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हालाँकि मोदी की नसीहत के बावजूद कई मंत्री और अफसर गाहे-बगाहे गैरजिम्मेदाराना बयानबाजी करते नजर आए।
छत्तीसगढ़ में 2006 बैच के आईएएस अफसर अलेक्स पॉल मेनन सोशल मीडिया में अपनी बेबाक राय रखने की वजह से सबसे ज्यादा विवादों में रहे हैं। उनकी हैदराबाद यूनिवर्सिटी के रोहित वेमुला द्वारा आत्महत्या के मामले से लेकर जेएनयू के कन्हैया कुमार द्वारा कथित देशद्रोही नारे के मुद्दे तक सोशल मीडिया में लिखी गई विवादास्पद बातों ने राज्य सरकार के भी होश फाख्ता कर दिए। हाल ही में उन्होंने भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते हुए सोशल मीडिया में लिख दिया था कि 94 फीसदी फांसी की सजा पाने वाले लोग मुसलमान या दलित होते हैं। हाल ही में सरकार ने उनकी इस टिपण्णी पर सख्त ऐतराज करते हुए उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
मेनन की तरह 2004 बैच के आईएएस अफसर अमित कटारिया भी सोशल मीडिया में सक्रीय हैं। कभी उनकी गौगल पहनकर प्रधानमंत्री मोदी से से हाथ मिलाते हुए तस्वीर सोशल मीडिया ने वायरल हो जाती है तो कभी वे बस्तर में मोटर साईकिल में तीन सवारी घूमते हुए मीडिया का ध्यान आकृष्ट कर जाते हैं।
मध्य प्रदेश में भी हाल ही में आईएएस संतोष गंगवार ने फेसबुक पर एक ऐसे लेख को लाइक कर दिया था जिसमे मोदी की आलोचना थी और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की तारीफ। गंगवार ने यह भी टिपण्णी की थी की क्या यह नेहरु की गलती थी कि उन्होंने हमें 1947 में हिन्दू तालिबानी राष्ट्र बनाने से बचा लिया था। मध्य प्रदेश सरकार ने गंगवार की बातों सेवा नियमों के विरुद्ध मानते हुए उन्हें बिका कारण बताए सचिवालय में अटैच कर दिया था।
दरअसल कई अवसरों पर अफसरों का बडबोलापन सरकार की नीतियों को ही कटघरे पर खड़ा कर देता है। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए केंद्र सरकार ने हाल ही में एक समिति गठित की जिसने अखिल भारतीय सेवाएं (आचरण) नियम 1968 का अध्ययन करने के बाद डीओपीटी को चार नियमों में संशोधन करने का प्रस्ताव भेजा है। सबसे महत्वपूर्ण संशोधन नियम सात के लिए प्रस्तावित है जिसके तहत नौकरशाह विभिन्न संचार माध्यमों द्वारा सरकार की खुलेआम आलोचना नहीं कर सकेंगे। इसी प्रस्ताव को केंद्र ने सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेज अपनी मंशा जाहिर करने को कहा है।
July 29, 2016
रायपुर
सार्वजानिक रूप से सरकार की आलोचना करने वाले बड़बोले नौकरशाहों पर केंद्र ने लगाम कसने की ठान ली है। अब यदि बाबुओं ने भावातिरेक में टेलीविज़न, सोशल मीडिया, कैरीकेचर या अन्य संचार माध्यमों में दायरे से बाहर जाकर सरकार के खिलाफ जहर उगला तो उन्हें कड़ी कार्रवाई झेलनी पड़ सकती है। नरेन्द्र मोदी सरकार का इशारा साफ़ है - प्रशासनिक स्तर पर कसावट लाने के लिए वह नौकरशाहों पर अनुशासन का डंडा चलाने से भी गुरेज नहीं करेगी। इस आशय से केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने 18 जुलाई 2016 को सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को पत्र प्रेषित कर 12 अगस्त 2016 तक राय मांगी है।
पिछले डेढ़ दशक में नेताओं के साथ-साथ सिविल सेवकों की भी टेलीविज़न, सोशल मीडिया और अन्य प्रसार माध्यमों में उपस्थिति बढ़ी है। कई बार ख़बरों में बने रहने के लिए इन नौकरशाहों ने अपनी सीमाएं लांघकर ऐसे-ऐसे बयान दिए कि संबंधित सरकारें भी सकते में आ गईं। दो वर्ष पहले मोदी ने प्रधानमंत्री पद सँभालते ही मंत्रियों और अफसरों को अनुशासन की घुट्टी पिलाते हुए साफ़ कर दिया था कि उनके राज में ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। हालाँकि मोदी की नसीहत के बावजूद कई मंत्री और अफसर गाहे-बगाहे गैरजिम्मेदाराना बयानबाजी करते नजर आए।
छत्तीसगढ़ में 2006 बैच के आईएएस अफसर अलेक्स पॉल मेनन सोशल मीडिया में अपनी बेबाक राय रखने की वजह से सबसे ज्यादा विवादों में रहे हैं। उनकी हैदराबाद यूनिवर्सिटी के रोहित वेमुला द्वारा आत्महत्या के मामले से लेकर जेएनयू के कन्हैया कुमार द्वारा कथित देशद्रोही नारे के मुद्दे तक सोशल मीडिया में लिखी गई विवादास्पद बातों ने राज्य सरकार के भी होश फाख्ता कर दिए। हाल ही में उन्होंने भारतीय न्यायिक व्यवस्था पर ही प्रश्नचिन्ह लगाते हुए सोशल मीडिया में लिख दिया था कि 94 फीसदी फांसी की सजा पाने वाले लोग मुसलमान या दलित होते हैं। हाल ही में सरकार ने उनकी इस टिपण्णी पर सख्त ऐतराज करते हुए उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
मेनन की तरह 2004 बैच के आईएएस अफसर अमित कटारिया भी सोशल मीडिया में सक्रीय हैं। कभी उनकी गौगल पहनकर प्रधानमंत्री मोदी से से हाथ मिलाते हुए तस्वीर सोशल मीडिया ने वायरल हो जाती है तो कभी वे बस्तर में मोटर साईकिल में तीन सवारी घूमते हुए मीडिया का ध्यान आकृष्ट कर जाते हैं।
मध्य प्रदेश में भी हाल ही में आईएएस संतोष गंगवार ने फेसबुक पर एक ऐसे लेख को लाइक कर दिया था जिसमे मोदी की आलोचना थी और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की तारीफ। गंगवार ने यह भी टिपण्णी की थी की क्या यह नेहरु की गलती थी कि उन्होंने हमें 1947 में हिन्दू तालिबानी राष्ट्र बनाने से बचा लिया था। मध्य प्रदेश सरकार ने गंगवार की बातों सेवा नियमों के विरुद्ध मानते हुए उन्हें बिका कारण बताए सचिवालय में अटैच कर दिया था।
दरअसल कई अवसरों पर अफसरों का बडबोलापन सरकार की नीतियों को ही कटघरे पर खड़ा कर देता है। ऐसी स्थितियों से बचने के लिए केंद्र सरकार ने हाल ही में एक समिति गठित की जिसने अखिल भारतीय सेवाएं (आचरण) नियम 1968 का अध्ययन करने के बाद डीओपीटी को चार नियमों में संशोधन करने का प्रस्ताव भेजा है। सबसे महत्वपूर्ण संशोधन नियम सात के लिए प्रस्तावित है जिसके तहत नौकरशाह विभिन्न संचार माध्यमों द्वारा सरकार की खुलेआम आलोचना नहीं कर सकेंगे। इसी प्रस्ताव को केंद्र ने सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेज अपनी मंशा जाहिर करने को कहा है।