योगेश मिश्रा
July 21, 2016
रायपुर
बीते एक दशक में छत्तीसगढ़ ने विकास की रफ़्तार के मामले में कई प्रदेशों को पीछे छोड़ दिया, लेकिन इसका लाभ यदि यहाँ के युवाओं को नहीं मिल रहा तो फिर इसका औचित्य क्या है? प्रदेश में करीब 50 इंजीनियरिंग व सात मेडिकल कालेज हैं। इसके अलावा राष्ट्रिय स्तर के संस्थान जैसे एम्स, आईआईटी, आईआईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, लॉ यूनिवर्सिटी आदि हैं। कौशल उन्नयन के लिए हर जिले में लाइवलीहुड कालेज है। सरकार दसियों रोजगार-मूलक कोर्स चला रही है। फिर भी यदि कोई दिव्यांग नौकरी न मिलने की वजह से कुंठित हो मुख्यमंत्री निवास के सामने आत्मदाह का प्रयास करे तो यह युवाओं के लिए बनाई गई पूरी नीति में दोष को उजागर करती है।
साधन-संसाधन से पूर्ण छत्तीसगढ़ में यदि देश-विदेश बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ कई लाख करोड़ का निवेश कर रही हैं तो स्थानीय युवाओं को रोजगार क्यों नहीं मिल रहा है? सरकार बड़े ताम-झाम के साथ निवेशकों को आमंत्रित करती है, कहती है - छत्तीसगढ़ में सब मिलेगा - सस्ती जमीन, सस्ती बिजली, भरपूर पानी और कुशल युवा। यदि यह सब सच है तो रोजगार कार्यालयों के सामने क्यों रोजाना सुबह से ही युवा लाइन लगाए खड़े रहते हैं?
युवाओं को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार केंद्र से कदम से कदम मिलाकर चल रही है। युवाओं में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए देश-प्रदेश द्वारा दर्जनों योजनायें चलाई जा रही हैं। कम ब्याज दरों में ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। भरोसा दिलाया जा रहा है कि आप तो बस व्यापार प्रारंभ करें, कोई समस्या नहीं आएगी, आपके प्रोजेक्ट में लालफीताशाही आड़े नहीं आएगी, समस्त कार्य सिंगल विंडो प्रणाली के तहत चुटकी में हो जायेंगे। पूरी कवायद ब्रेनड्रेन रोकने की है। लेकिन यथार्थ कुछ और है - जो युवा आईटीआई अथवा किसी कालेज से रोजगार-मूलक कोर्स कर यदि कोई व्यापार करना चाहता है तो अब भी बैंक के उतने चक्कर काट रहा है जितने पहले काटता था। ऋण तो दूर, बैंक उसे ऐसी प्रक्रिया में उलझा देती है की वह स्वरोजगार शुरू करने का विचार ही छोड़ देता है।
राज्य सरकार द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं का तो भगवान ही मालिक है। हर दूसरी परीक्षा विवादों में फंस जाती है और साथ ही लटक जाता है युवाओं का भविष्य। सरकार फिर भी कहती है यहाँ रोजगार की कमी नहीं है। शायद इसलिए वह अब दूसरे प्रदेश के युवाओं पर मेहरबानी करने के लिए शिक्षाकर्मियों और नर्सों के पदों को आउटसोर्स करने विज्ञापन निकलती है।
यदि राजधानी में कोई युवा और वो भी दिव्यांग रोजगार के आभाव में अपनी जीवनलीला समाप्त करने का प्रयास करता है तो इसका अर्थ है ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी भयावह होगी। प्रदेश में किसानों द्वारा सिलसिलेवार आत्महत्या के मामले किसी से छुपे हुए नहीं हैं। मनरेगा में यदि सबको 150 तक कम मिलता है तो लोग भरी तादाद में पलायन नहीं करते। युवा भारत के निर्माण का सपना साकार करने के लिए सरकारों को जमीनी हकीकत से पहले दो-चार होना पड़ेगा और यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि वो युवा जो रोजगार के आभाव में आत्महत्या कर लेते हैं या अपराधी बन जाते हैं उन्हें अपने पैरों में खड़े होने का कैसे मौका दिया जाए जिससे वे समाज में सम्मानपूर्वक जीवनयापन कर सकें।
July 21, 2016
रायपुर
बीते एक दशक में छत्तीसगढ़ ने विकास की रफ़्तार के मामले में कई प्रदेशों को पीछे छोड़ दिया, लेकिन इसका लाभ यदि यहाँ के युवाओं को नहीं मिल रहा तो फिर इसका औचित्य क्या है? प्रदेश में करीब 50 इंजीनियरिंग व सात मेडिकल कालेज हैं। इसके अलावा राष्ट्रिय स्तर के संस्थान जैसे एम्स, आईआईटी, आईआईआईटी, आईआईएम, एनआईटी, लॉ यूनिवर्सिटी आदि हैं। कौशल उन्नयन के लिए हर जिले में लाइवलीहुड कालेज है। सरकार दसियों रोजगार-मूलक कोर्स चला रही है। फिर भी यदि कोई दिव्यांग नौकरी न मिलने की वजह से कुंठित हो मुख्यमंत्री निवास के सामने आत्मदाह का प्रयास करे तो यह युवाओं के लिए बनाई गई पूरी नीति में दोष को उजागर करती है।
साधन-संसाधन से पूर्ण छत्तीसगढ़ में यदि देश-विदेश बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ कई लाख करोड़ का निवेश कर रही हैं तो स्थानीय युवाओं को रोजगार क्यों नहीं मिल रहा है? सरकार बड़े ताम-झाम के साथ निवेशकों को आमंत्रित करती है, कहती है - छत्तीसगढ़ में सब मिलेगा - सस्ती जमीन, सस्ती बिजली, भरपूर पानी और कुशल युवा। यदि यह सब सच है तो रोजगार कार्यालयों के सामने क्यों रोजाना सुबह से ही युवा लाइन लगाए खड़े रहते हैं?
युवाओं को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार केंद्र से कदम से कदम मिलाकर चल रही है। युवाओं में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए देश-प्रदेश द्वारा दर्जनों योजनायें चलाई जा रही हैं। कम ब्याज दरों में ऋण उपलब्ध कराया जा रहा है। भरोसा दिलाया जा रहा है कि आप तो बस व्यापार प्रारंभ करें, कोई समस्या नहीं आएगी, आपके प्रोजेक्ट में लालफीताशाही आड़े नहीं आएगी, समस्त कार्य सिंगल विंडो प्रणाली के तहत चुटकी में हो जायेंगे। पूरी कवायद ब्रेनड्रेन रोकने की है। लेकिन यथार्थ कुछ और है - जो युवा आईटीआई अथवा किसी कालेज से रोजगार-मूलक कोर्स कर यदि कोई व्यापार करना चाहता है तो अब भी बैंक के उतने चक्कर काट रहा है जितने पहले काटता था। ऋण तो दूर, बैंक उसे ऐसी प्रक्रिया में उलझा देती है की वह स्वरोजगार शुरू करने का विचार ही छोड़ देता है।
राज्य सरकार द्वारा आयोजित प्रतियोगी परीक्षाओं का तो भगवान ही मालिक है। हर दूसरी परीक्षा विवादों में फंस जाती है और साथ ही लटक जाता है युवाओं का भविष्य। सरकार फिर भी कहती है यहाँ रोजगार की कमी नहीं है। शायद इसलिए वह अब दूसरे प्रदेश के युवाओं पर मेहरबानी करने के लिए शिक्षाकर्मियों और नर्सों के पदों को आउटसोर्स करने विज्ञापन निकलती है।
यदि राजधानी में कोई युवा और वो भी दिव्यांग रोजगार के आभाव में अपनी जीवनलीला समाप्त करने का प्रयास करता है तो इसका अर्थ है ग्रामीण क्षेत्रों में स्थिति और भी भयावह होगी। प्रदेश में किसानों द्वारा सिलसिलेवार आत्महत्या के मामले किसी से छुपे हुए नहीं हैं। मनरेगा में यदि सबको 150 तक कम मिलता है तो लोग भरी तादाद में पलायन नहीं करते। युवा भारत के निर्माण का सपना साकार करने के लिए सरकारों को जमीनी हकीकत से पहले दो-चार होना पड़ेगा और यह सुनिश्चित करना पड़ेगा कि वो युवा जो रोजगार के आभाव में आत्महत्या कर लेते हैं या अपराधी बन जाते हैं उन्हें अपने पैरों में खड़े होने का कैसे मौका दिया जाए जिससे वे समाज में सम्मानपूर्वक जीवनयापन कर सकें।
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