Thursday, September 7, 2017

Sensitive opportunists

हंसा तो मोती चुगे - संवेदनशील अवसरवादी

योगेश मिश्रा

September 07, 2017

यहाँ रोज़ कोई न कोई मर रहा है और मारा जा रहा है, लेकिन अफ़सोस, अवसरवादियों की संवेदनाएं केवल कुछ लोगों के लिए ही जागती हैं। ठीक भी है, चिल्लाओ भी उसके लिए जिसकी मौत आपके करियर (Career) के बुझते दिए में घी का काम करे। मरते तो सैकड़ों हैं, लेकिन तूती उसकी बोलती है जो लाशों में भी अपने फायदे का चुनाव करना जानता हो। इसलिए तो दिल्ली और कलकत्ता में बैठे हुए व्यक्ति अपने शहर में हो रही हत्याओं को नजरअंदाज कर हैदराबाद और बैंगलोर में मारे गए लोगों के लिए अपने आंसू सहेज कर रखते हैं।

विडंबना देखिये - भारत में प्रजातंत्र को भी कुछ लोग अपना कॉपीराइट (Copyright) मानते हैं। ये खुश तो देश प्रजातान्त्रिक और इन्हें परेशानी तो देश अराजक। इनके लिए आम जन कीड़े-मकोड़े हैं - मरते हैं तो मरें, अपनी बला से। किसानों की मौत पर ये धरना देकर पल्ला झाड़ लेते हैं और जवानों की शहादत पर श्रद्धांजलि देकर। आश्चर्य तो तब होता है जब चंद लोगों की हत्या पर अपमानित महसूस कर छाती फाड़कर रोने वाले इन अवसरवादियों का ह्रदय न्याय के इन्तजार में तिल-तिल कर मरने वाली बलात्कार पीड़िताओं के लिए कभी क्रंदित नहीं होता।

पिछले कुछ सालों से भारत में अभिव्यक्ति के नाम पर जमकर राजनीति की जा रही है। लेकिन विरोधाभास देखिये - जिन अवसरवादियों की नजर में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी ख़त्म हो गई है, उनके नक़्शेकदम में चलने वाले शिक्षा की आड़ में चारदीवारी के भीतर खुलकर देशद्रोही नारे लगाने में लिप्त हैं।


दरअसल ये लोगों को बरगलाने और उकसाने वाली जमात है। ये मौका देखते हैं। इनकी फितरत है आपस में बैर करा के अपना उल्लू सीधा करना। यही वो मौकापरस्त हैं जो अविश्वास और नफरत की आबोहवा तैयार कर धर्म, जाति और वर्ग के नाम पर दंगा कराते हैं। किसी की हत्या, किसी की परेशानी और किसी की तबाही पर ये अपने सपनों का महल खड़ा करने के फिराक में रहते हैं। इनकी हरकतें इनकी पहचान है। इनकी भावनाएं आपको सच्ची प्रतीत होंगी। ये आपको अपनी भावनाओं में बहा ले जाने की ताकत रखते हैं। लेकिन जागृत व्यक्ति इनकी बातों में नहीं फंसेगा, इसलिए जागते रहना जरुरी है। आप चूके और ये सफल हुए। ये तो चुनना जानते हैं, लेकिन आप

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