योगेश
मिश्रा
जनवरी
२५,२०१६
छत्तीसगढ़
में कांग्रेस बौखलाई हुई है।
अंतागढ़ टेपकाण्ड से कई चौंकाने
वाले खुलासे होने के बावजूद
सोनिया और राहुल गाँधी धृतराष्ट्र
की भांति मौन धारण किये हुए
हैं। प्रदेश नेतृत्व के आग्रह
के बावजूद वे दल में ध्रुवीकरण
की राजनीति करने वालों के
खिलाफ कार्रवाई करने में परहेज
कर रहे हैं। उनके रुख से यह
प्रतीत होता है कि छत्तीसगढ़
उनकी प्राथमिकता सूची में
कहीं नही है।
वर्तमान
में सोनिया व् राहुल का पूरा
ध्यान दस राज्यों में होने
वाले आगामी विधानसभा चुनावों
पर केन्द्रित है। जाहिराना
तौर पर उनकी मंशा पहले भारतीय
जनता पार्टी को देश के अन्य
भागों में मजबूत होने से रोकने
की है, फिर
भले ही इस कसरत में छत्तीसगढ़
में प्रदेश संगठन कमजोर रह
जाए। गाँधी परिवार की यही
उदासीनता प्रदेश नेतृत्व को
साल रही है।
छत्तीसगढ़
में कांग्रेस पिछले बारह
वर्षों से सशक्त विपक्ष की
भूमिका निभाने की बात कह रहा
है, हालाँकि
निभा नहीं पा रहा है। कारण साफ़
है - जब
जब यह दल मजबूत होने की दिशा
में अग्रसर होता है,
इसके अपने
नेता इसे विखंडित कर देते हैं।
दरअसल,
कांग्रेस
में अनुशासन मजाक बनकर रह गया
है। कार्रवाई केवल प्रभावहीन
चेहरों के विरुद्ध होती है,
प्रभावशाली
नेताओं को अभयदान दे दिया जाता
है।
हालाँकि
गाँधी परिवार की चुप्पी का
दूसरा पहलु भी है। वह अनुशासन
के नाम पर असंतुष्ट व् विद्रोही
नेताओं को फौरी तौर पर दल से
बाहर निकालने में यकीन नहीं
रखता। यदि ऐसा होता तो पिछले
कुछ वर्षों में कांग्रेस से
कई बड़े चेहरे साफ़ हो जाते -
फिर चाहे
वो दिग्विजय सिंह हों,
कैप्टन
अमरिंदर सिंह या संजय निरुपम।
छत्तीसगढ़ के मामले में भी
सोनिया व् राहुल धैर्य बरत
रहे हैं। अब देखना यह है कि यह
रवैय्या प्रदेश कांग्रेस के
स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है
या हानिकारक।
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