Friday, January 29, 2016

ऊँची दूकान, फीके पकवान

योगेश मिश्रा
January 29, 2016
रायपुर

पिछले १५ वर्षों में छत्तीसगढ़ ने देश में वो कर दिखाया जो बहुत से प्रदेश छह दशकों में नही कर सके। अल्प समय में ही इस प्रदेश ने कमोबेश हर क्षेत्र में राष्ट्रिय स्तर का पुरस्कार जीता। फिर क्या वजह रह गई कि सरकार ने शहरों को संवारने में कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई? आज देश में २० शहरों को स्मार्ट सिटी के लिए चुना गया परन्तु छत्तीसगढ़ द्वारा प्रस्तावित रायपुर और बिलासपुर पहले ५० शहरों में भी नही हैं। बड़े शर्म की बात है। प्रदेश तरक्की कर रहा है परन्तु शहर जस के तस हैं।

अन्य शहरों की बात छोड़िये, राजधानी रायपुर तक अभावग्रस्त है। सड़कें कम हैं, ट्रैफिक अधिक। बजबजाते हुए नाले और नाली नरेंद्र मोदी सरकार के स्वच्छ भारत के स्वप्न को दुस्वप्न में बदलने के लिए आतुर दिखते हैं। उद्योगों और वाहनों ने हवा में जहर घोल दिया है और जीवन नरक बना दिया है, लेकिन सरकार गौरव पथ बनाकर, चौक-चौराहों का सौन्दर्यीकरण करके शहरों को लन्दन और पेरिस के समकक्ष बनाने की बात करती है।

शहरों में वास्तव में मूलभूत सुविधा है कहाँ? न गर्मियों मे पर्याप्त पीने का पानी न बरसात में जलनिकास की व्यवस्था। विकास पर राजनीति इतनी हावी रहती है कि साल भर सरकार और नगरीय निकाय आपस में ही भिड़े रहते हैं। सभी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी मढ़ते रहते हैं। मिलकर काम करने की इच्छाशक्ति ही नहीं है। जब हालात ही ऐसे हैं, तो परिणाम अनुकूल कहाँ से आएंगे? एक कुनबा बनाने के लिए तो पीढियां लग जाती हैं, एक शहर को स्मार्ट बनाने के लिए कुछ तो बलिदान करना होगा, कुछ राजनेताओं को करना होगा, कुछ आम जनता को..

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