Saturday, August 13, 2016

काले सोने का सफेद सच: आदिवासियों के जीवन में अंधेरा कर देश को कर रहा रोशन

योगेश मिश्रा
August 13, 2016
रायपुर

कोयला भारत की उर्जा नीति में धुरी और अर्थव्यवथा में रीढ़ है। भारत की दो तिहाई बिजली कोयले से पैदा होती है और यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक व उपभोक्ता देश है।  गैर-परंपरागत उर्जा को बढ़ावा देने के साथ-साथ नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2020 तक कोयले के वार्षिक उत्पादन को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। हालाँकि काले सोने से उर्जा के क्षेत्र में विकास की नई इबारत लिखने की चाहत रखने वाली केंद्र व राज्य सरकारें इसके उत्खनन से प्रभावित होने वाले लोगों से उनकी जमीन अधिग्रहित करने, जंगलों का खात्मा करने और उनकी ज़िन्दगी को खतरे में डालने से पहले उनकी राय लेने की भी जहमत नहीं उठाना चाहतीं। फलस्वरूप ऐसे लोग, जिनमें नब्बे फीसदी आदिवासी हैं और जिनके लिए विकास, नीति और कानून महज कागजों में स्याही से उकेरी गई आड़ी-तिरछी लाइनों से ज्यादा कुछ नहीं, इस असमंजस में हैं कि ऐसी स्थिति में अपने दुर्भाग्य को कोसें या सरकार को।  

देश का 70 प्रतिशत कोयला छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओडिशा में है। इन राज्यों में करीब 2.60 करोड़ आदिवासी (जिनकी संख्या भारत के आदिवासियों की कुल जनसँख्या का 25 प्रतिशत है) अंधाधुंध खनन से बदतर जीवन निर्वाह करने के लिए मजबूर हैं। पिछले छः दशकों में केंद्र व राज्यों में कई सरकारें आईं और गईं लेकिन विकास के संकुचित रोडमैप में इनके भाग्य को बदलने के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई।

केंद्र सरकार की कोल इंडिया लिमिटेड, जो विश्व की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक संस्था है, ने 2020 तक एक बिलियन टन के वार्षिक उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए आक्रामक नीति बनाई है। इसके तहत कोल इंडिया की तीन इकाइयाँ - एसईसीएल, सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड और महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड  - छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओडिशा में भूमि अधिग्रहण से लेकर पर्यावरण कानूनों को धता बताकर और प्रभावित आदिवासियों को बिना भरोसे में लिए खदान विस्तार की प्रक्रिया को अंजाम दे रही हैं।

एमनेस्टी इंटरनेशनल का खुलासा
एसईसीएल छत्तीसगढ़ के कुसमुंडा खदान को संचालित कर रही है जबकि सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड झारखण्ड के तेतरिखार खदान और महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड ओडिशा के बसुन्धरा-वेस्ट खदान का सञ्चालन करती हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इन क्षेत्रों में जनवरी 2014 से जून 2016 तक विस्तृत सर्वे के दौरान पाया कि भूमि अधिग्रहण के निर्णय से पहले वहां निवासरत आदिवासियों से कोई रायशुमारी नहीं की गई। बहुतों को तो मुआवजे और विस्थापन के लिए दशकों इन्तजार करना भी पड़ा। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार दावा-आपत्ति और जनसुनवाई की सूचनाएँ प्रभावितों तक या तो नहीं पहुंची या देर से पहुंची। कम पढ़े-लिखे अथवा अनपढ़ अदिवासियों तक अख़बार के बजाए अन्य प्रभावी माध्यमों द्वारा सूचना पहुँचाने का प्रयास कभी नहीं किया गया।

नहीं मिला किसी कानून का लाभ
कोयला खनन से प्रभावितों के मुआवजे, विस्थापन और विकास के लिए चार महत्वपूर्ण कानून हैं - कोयला क्षेत्र अधिग्रहण और विकास अधिनियम 1957,  पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986, पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम 1996 (पेसा) और वन अधिकार अधिनियम 2006। इन कानूनों से छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओडिशा के प्रभावित आदिवासियों को अब तक उतना लाभ नहीं मिला जितने का सरकारें  दावा करती आई हैं।

छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के पास दावे की गुंजाईश ही नहीं बची
कुसमुंडा खदान देश के सबसे बड़े खदानों में से एक है और छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थित है। भूमि अधिग्रहण से प्रभावित आमगाँव के आदिवासी कहते हैं - एसईसीएल वाले अधिग्रहण का नोटिस पंचायत के दफ्तर में चिपका कर चलते बने, भला हम दावा करते भी तो कैसे? कुसमुंडा खदान 2382 हेक्टेयर में फैला हुआ है। इसका वार्षिक उत्पादन 2009 में 10 मिलियन टन से 15 मिलियन टन तक बढ़ा दिया गया। वर्ष 2014 में उत्पादन 18.75 मिलियन टन हुआ और 2016 की पहली तिमाही तक यह आंकड़ा 26

मिलियन टन हो गया।

जून 2009 में विस्तार के समय प्रभाव क्षेत्र में आने वाले पांच गाँवों (रिस्दी, सोनपुरी, पाली, पडनिया और जटरज)  के लगभग 3600 आदिवासियों को अखबार के माध्यम से भूमि अधिग्रहण की सूचना दी गई। कम पढ़े-लिखे होने की वजह से यह सूचना इन आदिवासियों के पल्ले ही नहीं पड़ी। उन्होंने कहा कि किसी को भी सूचना सीधे नहीं दी गई। अप्रैल 2014 में प्रभावितों ने बताया कि बाद में उन्हें केवल एक सूचना मिली कि एसईसीएल ने उनकी 752 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित कर ली है।

20 जुलाई 2014 को केन्द्रीय कोयला मंत्रालय ने गजट में प्रकाशित किया कि कुसमुंडा खदान के एक और विस्तार के लिए पांच गांवों (आमगाँव, चुरैल, खोदरी, खैरबावना और गेवरा) के 1051 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा जिससे लगभग 13,000 निवासी प्रभावित होंगे। 30 दिनों के अन्दर मुआवजे व विस्थापन के लिए दावा-आपत्ति मंगाई गई लेकिन प्रभावितों ने कहा उन्हें कोई सूचना नहीं मिली। हालाँकि कुछ ने कोयला नियंत्रक व एसईसीएल को अपनी आपत्तियां भेजीं परन्तु उसका भी कोई परिणाम नहीं निकला।

झारखण्ड में बिना पूछे ले ली गैर मजरुआ भूमि
झारखण्ड के तेतरिखार खदान के लिए पीढ़ियों से रह रहे आदिवासियों की गैर मजरुआ भूमि बिना पूछे ही अधिग्रहीत कर ली गई। नियमानुसार, गैर मजरुआ या साधारण भूमि को उत्खनन के लिए अधिग्रहीत करने से पहले स्थानीय प्रशासन से अनुमति अनिवार्य है। लेकिन, इस केंद्र ने इस नियम की अनदेखी कर आदिवासियों की करीब 40 हेक्टेयर गैर मजरुआ भूमि अधिग्रहीत कर ली जिसका अब तक कोई उपयोग नहीं किया गया है।

तेतरिखार खदान 131 हेक्टेयर में फैला हुआ है। सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड इसका वार्षिक उत्पादन 0.5 मिलियन टन से 2.5 मिलियन टन करने का लक्ष्य रखा है। भूमि अधिग्रहण से बसिया, नागारा, जाला और पिन्दार्कोम के लगभग 6400 आदिवासी प्रभावित होंगे।

ओडिशा में खदान की जमीन पर पॉवर प्लांट लगाने की तैयारी
महानदी कोलफील्ड्स लिमिटेड ने ओडिशा के सुंदरगढ़ में स्थित बसुन्धरा-वेस्ट खदान का वार्षिक उत्पादन 2.4 मिलियन टन से बढाकर 8 मिलियन टन करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। यह खदान 401 हेक्टेयर में फैला हुआ है। एमसीएल ने खदान के लिए सारडेगा, टिकलीपारा और कुल्हापारा में कोयला क्षेत्र अधिग्रहण और विकास अधिनियम 1957 के तहत 1989 और 1990 में 860 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहीत की थी, लेकिन अब वहां की आधी जमीन पर पॉवर प्लांट (क्षमता - 2x800 मेगावाट) स्थापित करने की  तैयारी चल रही है। स्थानीय ग्राम सभाएं इसका विरोध कर रही हैं। उनका कहना है कि खदान के लिए ली गई भूमि पॉवर प्लांट के लिए तब तक ट्रान्सफर नहीं होने देंगे जब तक एमसीएल सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार मुआवजा, विस्थापन और व्यवस्थापन की प्रक्रिया का पालन नहीं करती।

नहीं हुआ कानून का उल्लंघन

छत्तीसगढ़ के उद्योग, खनन व खनिज सचिव सुबोध सिंह का कहना है कि उनकी जानकारी में भूमि अधिग्रहण के मामले में किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं हुआ है. उनका कहना है, "सरकार को इस सिलसिले में कभी कोई शिकायत भी नहीं मिली. छत्तीसगढ़ सरकार कोयला खदानों के लिए भूमि अधिग्रहण से पहले मुआवजा और व्यवस्थापन से सम्बद्ध सभी नियमों का परिपालन करती है. छत्तीसगढ़ तो आदर्श मुआवजा नीति अपनाते हुए भूमि अधिग्रहण के एवज में दो से चार गुना राशि प्रभावितों को देती है."

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