Wednesday, October 2, 2013

किस्सा कुर्सी का - राहुल विचलित क्यों हैं?


October 02, 2013



राजनीति मे अपनी काबिलियत साबित करने के लिए दूसरों को नकारा सिद्ध करना पढ़ता है। केंद्र द्वारा दागियों को बचाने के लिए लाए गए अध्यादेश को बकवास कहकर राहुल गाँधी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को यही संदेश दिया है।



राहुल 43 के हो गए हैं। आने वाले आम चुनाव मे कांग्रेसी उन्हें प्रधानमंत्री प्रत्याशी बनाना चाहते हैं। अपनों की आँखों मे वे राजकुमार हैं, परंतु विपक्षी दल उन्हें अपरिपक्व मानते हैं। यही बातें उन्हें ख़टकती हैं। वे भली-भाँति जानते हैं कि यदि विपक्षी उन्हें गंभीरता से नही लेंगे तो जनता भी उन्हें तरजीह नही देगी। स्वयं को परिपक्व सिद्ध करने के लिए वे पिछले कई वर्षों से निरंतर संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उनकी बातें आम जनता को अब भी बेसिरपैर की लगती हैं।

सरकार के अध्यादेश पर प्रतिक्रिया व्यक्त करके एक बार फिर उन्होने अपनी अपरिपक्वता ज़ाहिर की है। पिछले कुछ समय से कांग्रेस यह प्रचार करती फिर रही है कि यूपीए सरकार की जनकल्याणकारी विधेयकों (जैसे - खाद्य सुरक्षा, सूचना का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, भूमि अधिग्रहण, आदि) को मूर्त रूप देने मे राहुल ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। हो सकता है। जनता से जुड़े मुद्दों पर गाँधी परिवार अपनी रूचि अवश्य दिखाता है। अब दागियों को बचाने के लिए बनाए गए अध्यादेश को लाने के लिए सोनिया व राहुल ने सोच-समझकर अपनी सहमति दी या आँख मूंदकर, यह तो वे ही जानें, परंतु मनमोहन सरकार कोई काम उनकी जानकारी के बगैर कर ले, यह संभव नही।

अपनी ही सरकार की आलोचना करके राहुल शायद यह इंगित करना चाहते हैं कि समय आने पर वे अपने दल नही, देश के हित मे निर्णय लेने के पक्षधर हैं। यदि वाकई ऐसा है तो उन्हें यह कार्य बहुत पहले कर लेना चाहिए था। देश की तस्वीर ही बदल जाती। परंतु अफ़सोस, ना तो उन्होने कभी अपनी सरकार को देश की कमजोर होती आर्थिक-सामाजिक-सामरिक स्थिति के लिए ज़िम्मेदार ठहराया और ना ही ऐसी परिस्थितियों से उबरने के लिए जल्द कोई व्यवहारिक कदम उठाने के लिए कहा।

ज्ञान व अनुभव से बढ़कर कोई धन नही होता। राहुल इस मामले मे निर्धन हैं। हालांकि किस्मत के वे धनी हैं, इसलिए कांग्रेसी उनकी सतही बातों मे भी अपने-अपने हिसाब से गहराई ढूँढ लेते हैं और उनमे भावी प्रधानमंत्री की छवि देखते हैं। दरअसल, पूरे विश्व मे भारत ही एकमात्र राष्ट्र है जहाँ प्रधानमंत्री बनने के लिए काबिलियत की नही बल्कि सिर्फ़ और सिर्फ़ किस्मत की ज़रूरत होती है (वैसे यह बात लालबहादुर शास्त्री और अटल बिहारी वाजपयी के लिए लागू नही होती)।

परंतु वर्तमान परस्थितियों के मद्देनजर, आने वाले आम चुनाव मे जनता किसकी किस्मत पर मुहर लगाएगी, कहना मुश्किल है। राहुल की टक्कर सीधे नरेंद्र मोदी से है। दोनो ही जनता से कमोबेश रोज ही मुखातिब हो रहे हैं। एक सपनो की बात कर रहा है, दूसरा हक़ीकत की। जनता तौल रही है। चुनाव संभवतः अप्रेल-मई 2014 मे होंगे। तब तक राहुल के पास कई मौके आएँगे अपनी सरकार को आड़े हाथों लेने के। अध्यादेश का वाक़या ख़त्म हुआ। मनमोहन ने इसपर फिर से विचार करने के लिए 2 अक्तूबर को कॅबिनेट की मीटिंग बुलाई है। अब राहुल को अन्य गंभीर मुद्दों की ओर रुख़ करना चाहिए जिससे चुनाव पूर्व जनता का भला हो सके। शायद ऐसा करने से कांग्रेस अपेक्षा से अधिक सीटें जीतने मे कामयाब हो जाए।

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