रायपुर।
अगर आप प्रदेश के किसी सायबर कैफ़े मे बैठकर इंटरनेट मे काम करना चाहते हैं तो ज़रा ठहरिए और सबसे पहले यह सुनिश्चित करिए कि आपने अपना पहचान पत्र साथ रखा है कि नही। आप शायद हतप्रभ होकर यह पूछेंगे कि भई सायबर कैफ़े मे पहचान पत्र दिखाने की क्या ज़रूरत है? किंतु ज़रूरत है और इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ सायबर कैफ़े नियम 2009 बनाया है। दूसरी तरफ इस नियम के दुरूपयोग की आशंकाएं भी व्यक्त की जा रही हैं, फिर भी यह माना जा रहा है कि यदि इस नियम का दुरूपयोग नहीं हुआ तो इससे साइबर अपराध को नियंत्रित करने में काफी मदद मिलेगी।
राज्य सरकार के गृह विभाग के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 के तहत नियम बनाए गये हैं। इस नियम के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति सायबर कैफ़े मे बिना पहचान पत्र दिखाए इंटरनेट का उपयोग नही कर सकता। अगर किशोरों और बच्चों को सायबर कैफ़े मे इंटरनेट का उपयोग करना हो तो उन्हें अपने माता या पिता मे से किसी एक अभिभावक को साथ ले जाना होगा।
पिछले कुछ वर्षों मे प्रदेश मे जिस तरह इंटरनेट उपयोग करने वालों की संख्या मे बेतहाशा वृद्धि हुई है उसी अनुपात मे राज्य के सभी छोटे-बड़े शहरों एवं कस्बों मे सायबर कैफ़े खुल गए हैं। आमतौर पर लोग इंटरनेट का उपयोग ई-मेल के आदान-प्रदान, अपने व्यवसाय संबंधी कार्य करने अथवा विभिन्न विषयों मे अपना ज्ञानवर्धन करने के लिए करते हैं। परंतु बहुत से लोग इसी माध्यम का उपयोग अपने आपराधिक मंसूबों को अंजाम देने के लिए करते हैं जैसे-अश्लील वेबसाइट का निर्माण कर युवा वर्ग को पथभ्रष्ट करना, अपने व्यवसायिक प्रतिद्वन्द्वी के कंप्यूटर का पासवर्ड चुराकर उसके महत्वपूर्ण दस्तावेज़ अथवा डाटा डाउनलोड कर लेना, दूसरों के इंटरनेट बैंक खातों का पासवर्ड चुराकर उनके पैसे अपने खाते मे स्थानांतरित कर लेना या फिर गुप्त भाषा का प्रयोग कर दूर बैठे अपने दूसरे अपराधी साथियों तक अपना संदेश पंहुचाना। इसी प्रकार इंटरनेट का दुरुपयोग आतंकवादी अपने प्रचार-प्रसार के लिए एवं कई देशों की सुरक्षा एजेंसियां अपने दुश्मन देशों के गुप्त दस्तावेज़ हथियाने के लिए करते हैं।
राज्य के गृह विभाग ने इसी प्रकार के हाइ-टेक सायबर अपराधों की संभावनाओं को ध्यान मे रखते हुए सायबर कैफ़े नियम बनाया है। इसमे सायबर कैफ़े संचालकों के लिए स्पष्ट निर्देश है कि उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि कंप्यूटर का उपयोग अवैधानिक कार्यों के लिए नही हो। इसके साथ ही कैफ़े संचालक न केवल अपने कैफ़े मे 'अश्लील वेब साइट्स देखना निषिद्ध है' का बोर्ड लगाएगा बल्कि इंटरनेट उपयोगकर्ता, अश्लील वेबसाइट न खोल सके, ऐसा सॉफ़्टवेयर अथवा हार्डवेयर भी कंप्यूटरों मे इनस्टॉल करके रखेगा।
इस नियम के संबंध मे गृह विभाग ने अधिसूचना जारी कर दी है। अधिसूचना राजपत्र मे प्रकाशन के तीस दिन के बाद लागू होगी। सायबर कैफ़े के संचालकों तथा इंटरनेट के उपयोगकर्ताओं को सायबर नियमों का पालन कड़ाई से करना होगा एवं इनका उल्लंघन करने वाले व्यक्ति पर राज्य पुलिस को कार्रवाई करने का अधिकार होगा।
सायबर कैफ़े नियम के मुताबिक इंटरनेट उपयोगकर्ता को अपनी पहचान बताने के लिए स्कूल या महाविद्यालय का पहचान पत्र, बैंक का फोटोयुक्त क्रेडिट कार्ड, मतदाता परिचय पत्र, आयकर का स्थाई ख़ाता संख्या (पैन कार्ड), नियोक्ता का फोटोयुक्त पहचान पत्र अथवा ड्रायविंग लाइसेंस प्रस्तुत करना होगा। यदि किसी ग्राहक के पास उपरोक्त दस्तावेज़ उपलब्ध न हों तो सायबर कैफ़े का संचालक संबंधित व्यक्ति का फोटो अपने वेब कैमरा से खींच सकेगा। वहीं महिलाओं के मामले मे कैफ़े संचालकों को अत्याधिक सावधानी बरतनी होगी क्योंकि नियम के अनुसार उन्हें किसी भी महिला इंटरनेट उपयोगकर्ता की पूरी तस्वीर लेने की इजाज़त नही होगी। हालाँकि पहचान के लिए वे महिलाओं की इतनी तस्वीर ले सकते हैं जिसमे उनकी आँखें एवं नाक स्पष्ट रूप से दिखाई दे।
कैफ़े संचालक अपने ग्राहक के अतिरिक्त पहचान के लिए अंगुल चिन्ह से चलने वाले की-बोर्ड का उपयोग लॉग-इन के लिए कर सकता है अथवा उसकी आवाज़ की रिकार्डिंग भी कर सकता है। सायबर संचालक यदि एक बार किसी इंटरनेट ग्राहक की पूर्ण पहचान कर लेता है तो उस रिकार्ड को उसे कम से कम एक वर्ष तक के लिए लॉग रजिस्टर के लिखित एवं ऑनलाइन स्वरूप मे रखना होगा। इसके साथ ही कैफ़े संचालकों को इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का तिथिवार विवरण प्रदर्शित करते हुए मासिक रिपोर्ट तैयार कर उसकी एक हार्ड और सॉफ्ट कॉपी संबंधित पुलिस थाने मे प्रत्येक माह की पाँच तारीख को जमा करनी पड़ेगी।
सायबर कैफ़े नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए पुलिस को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपने क्षेत्र मे स्थित किसी भी सायबर कैफ़े का निरीक्षण जब चाहे कर सकेगी और नियमों को नज़र अंदाज करने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर सकेगी। नियम के अनुसार यदि कोई नया सायबर कैफ़े खोलना अथवा बंद करना चाहता है तो इसकी सूचना उसे पुलिस को तत्काल देनी होगी। वहीं सायबर कैफ़े की संरचना इस प्रकार होनी चाहिए की उसके अंदर किया गया विभाजन अथवा बनाया गया क्यूबिकल फर्श से साढ़े चार फीट से उँचा ना हो तथा प्रत्येक क्यूबिकल मे रखे गये कंप्यूटर का मॉनिटर का मुँह क्यूबिकल के खुले हुए भाग की तरफ हो।
गृह विभाग को यकीन है कि एक महीने मे प्रदेश के समस्त सायबर कैफ़े संचालक सायबर कैफ़े नियम के अनुरूप अपनी पूरी तैयारी कर लेगे एवं इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को भी इसका पालन करने के लिए प्रेरित करेंगे जिसके फलस्वरूप प्रदेश मे सायबर अपराध होने की संभावना ख़त्म हो जाएगी। इस नियम को लेकर कुछ उपभोक्ता आशंकित भी हैं कि पुलिस को किसी की निजता में हस्तक्षेप करने का अवसर मिल जाएगा और साइबर कैफे के संचालकों का पुलिस इस नियम की आड़ में उत्पीड़न भी कर सकती है। इस अवस्था से निपटने के लिए कोई स्पष्टता प्रकट नही की गई है। अधिकांश इंटरनेट उपभोक्ताओं ने इस बात का स्वागत किया है कि अश्लीलता से अतिरंजित वेबसाइटों के प्रदर्शन पर अंकुश लगाने के प्रयास किए गए हैं। राज्य में इस विषय पर एक बहस तो छिड़ ही गई है।
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