रायपुर।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा रमन सिंह ने दो टूक शब्दों मे यह साफ कर दिया है कि उन्हें केन्द्र की राजनीति मे कोई दिलचस्पी नही है और उनका संपूर्ण ध्यान केवल प्रदेश के उत्थान कार्यों पर केंद्रित है। उनके इस बयान से प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के कुछ महत्वाकांक्षी नेताओं को वाकई निराशा हुई होगी जो यह मानकर चल रहे थे कि आने वाले समय मे रमन सिंह अपना राजनैतिक ग्राफ बढ़ाने के लिए केंद्र की ओर अवश्य रुख़ करेंगे जिससे उनके मुख्यमंत्री बनने के सपने सच हो सकते हैं। तो क्या यह मान लिया जाए कि रमन सिंह भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के दूसरी पंक्ति के उन नेताओं मे शामिल नही हैं जो सन 2014 के आम चुनाव मे स्वयं को पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप मे देखने का सपना संजोए बैठे हैं? शायद यह कहना जल्दबाज़ी होगा। क्योंकि रमन सिंह ने यह मंशा राजनीति के वर्तमान परिप्रेक्ष्य मे ज़ाहिर की है और हम यह निश्चित तौर पर नही मान सकते कि वे भविष्य मे भी केंद्र के राजनीतिक अखाड़े मे अपना भाग्य आज़माने से परहेज़ करेंगे।
अब तक इतिहास गवाह रहा है कि नेता पहले अपने राजनैतिक व्यक्तित्व को प्रदेश स्तर पर एक पहचान देने का प्रयत्न करते हैं तदुपरांत केंद्र की बिसात मे अपना दांव खेलते हैं। मगर रमन सिंह ने यह इंगित कर दिया है कि वे किसी भी तरह की जल्दबाज़ी मे नही हैं और वर्तमान मे उनका केवल एक ही उद्देश्य है - छत्तीसगढ़ मे भाजपा को एक अभेद्य पार्टी के रूप मे स्थापित करना। इस संदर्भ मे उनके प्रयासों को नकारा भी नही जा सकता जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण है भाजपा का लगातार दूसरी बार छत्तीसगढ़ की सत्ता पर क़ाबिज़ होना। इसी तारतम्य मे रमन सिंह ने वर्तमान लोक सभा चुनाव मे भी पार्टी के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप मे अपने प्रत्याशियों के लिए धुआंधार प्रचार किया।
नक्सलवाद से निपटने के लिए रमन सरकार का आरंभ किया 'सलवा जुड़ूम' अभियान भी पार्टी की छवि संवारने मे काफ़ी कारगर सिद्ध हुआ। इस अभियान की सबसे बड़ी ख़ासियत थी इससे जुड़ने वाले विभिन्न विचारधारा के लोग, जिनमे प्रदेश के पूर्व नेता प्रतिपक्ष एवं कॉंग्रेस के कद्दावर आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा भी शामिल थे। हालाँकि इस अभियान की आलोचना भी खूब हुई और देश के तमाम राजनीतिक, सामाजिक एवं गैर सरकारी संगठनों ने सलवा जुड़ूम को असफल करार देते हुए कहा कि राज्य सरकार मासूम आदिवासियों की जान को ख़तरे डाल रही है। वहीं केंद्र मे कॉंग्रेस-शासित संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार ने भी इस अभियान की कार्यप्रणाली पर ही प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया, मगर साथ ही सावधानीपूर्वक इस मुद्दे मे किसी प्रकार के हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा की यह राज्य सरकार का अन्दरूनी मामला है।
छप्पन वर्षीय रमन सिंह ने सन 2003 मे जब पहली बार प्रदेश की कमान अपने हांथों मे ली तब यह क़यास जा रहा था की वो अधिक दिनो तक मुख्यमंत्री पद पर टिक नही सकेंगे। शुरुआती दौर मे ना केवल विपक्षी कॉंग्रेस पार्टी उनकी कार्यक्षमता पर संशय करती थी बल्कि उनकी अपनी पार्टी के कुछ नेता भी उन्हें मुख्यमंत्री पद के लिए अनुपयुक्त मानते थे क्योंकि उनका अधिकाँशतः राजनैतिक अनुभव संगठन के कार्यों का था, सत्ता चलाने का नही। परंतु उन्होंने अपनी स्वच्छ छवि और सधी हुई कार्यकुशलता से सभी अटकलों पर पूर्ण विराम लगा दिया और ना केवल सफलतापूर्वक पाँच साल का कार्यकाल पूर्ण किया बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि पार्टी सन 2008 का विधान सभा चुनाव एकजुट होकर लड़े।
किंतु राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं जनता ने रमन सिंह की भाजपा सरकार को दोबारा मौका इसलिए दिया क्योंकि प्रदेश कॉंग्रेस का ध्रुवीकरण हो गया था और पार्टी के दिग्गज नेता अपने अपने चहेतों को टिकट दिलाने के लिए आपस मे होड़ लगाने मे अधिक व्यस्त थे बनिस्बत पार्टी की सुध लेने के। कॉंग्रेसी कार्यकर्ता भी दबी ज़ुबान मे स्वीकार करने से नही चूकते कि पार्टी को पराजय का दंश इसलिए झेलना पड़ा क्योंकि उनके आला नेताओं को सही समय पर संगठित होना नही आया। इस लोक सभा चुनाव मे भी कॉंग्रेसी नेताओं ने परस्पर सहयोग की भावना को ताक पर रख दिया और प्रचार प्रसार के अवसरों पर बिखरे बिखरे दिखे। वहीं भाजपाइयों के उत्साह मे भरपूर इज़ाफ़ा दिखा क्योंकि हाल ही मे उन्होंने विधान सभा चुनाव मे जीत का स्वाद चखा था।
इसका ये मतलब कतई नही है कि भाजपा मे कोई असंतोष के स्वर नही सुनाई पड़ते या उसकी मुश्किलों मे कोई कमी आई है। अलबत्ता राजनैतिक पार्टियों का तो मुश्किलों से चोली दामन का साथ होता है फिर भाजपा इससे कैसे अछूती रह सकती है। इसका ताज़ा उदाहरण है हाल ही मे संपन्न विधान सभा चुनाव मे भाजपा के 65 कार्यकर्ताओं के पार्टी-विरोधी कार्यों मे लिप्तता के मद्देनज़र पार्टी द्वारा लिया गया कठोर निर्णय जिनमे 30 लोगों को निष्कासित कर दिया गया एवं बाकी 35 लोगों को पार्टी से निलंबित कर दिया गया। निष्कासितों की सूची मे भाजपा के दिग्गज नेता और चार बार चुने गये सांसद ताराचंद साहू भी शामिल थे जिनपर यह आरोप था कि उन्होने खुलेआम अपनी ही पार्टी के दुर्ग विधान सभा के उम्मीदवार एवं तत्कालीन विधान सभा अध्यक्ष प्रेम प्रकाश पांडे को हराने के लिए मोर्चा खोल दिया था जिसके फलस्वरूप पांडे को हार का मुँह देखना पड़ा। निष्कासन ने ताराचंद साहू के तेवर को और तीखे कर दिए जिसके परिणामस्वरूप उन्होने रमन सरकार की कार्यप्रणाली से लेकर भाजपा की नीतियों के विरुद्ध ऐसे ऐसे तल्ख़ बयान दिए जिससे पार्टी के पैरों तले ज़मीन खिसक गयी। साथ ही उन्होने वर्तमान संसदीय चुनाव मे दुर्ग क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप मे चुनाव लड़कर ‘स्थानीय विरुद्ध बाहरी प्रत्याशी’ के मुद्दे को जमकर हवा दी जिससे दोनो भाजपा तथा कॉंग्रेस के वोट बैंकों पर भारी सेंध पड़ने की आशंका ज़ाहिर की जा रही है।
मगर रमन सिंह इन कठिन परिस्थितियों मे भी अविचलित नज़र आए। उन्होने किसी भी निष्कासित अथवा निलंबित नेता के विरुद्ध सार्वजनिक तौर पर ग़ैरज़िम्मेदाराना बयान देने के बजाय पार्टी आलाकमान के निर्णय का सम्मान करते हुए खामोशी अख्तियार करना ही बेहतर समझा। पार्टी हलकों मे कहा जाता है की इस तरह की राजनैतिक सूझबूझ तथा परिपक्वता की वजह से ही रमन सिंह की गिनती राष्ट्रीय भाजपा के दूसरी पंक्ति के दमदार नेताओं मे की जाती है। जोड़तोड़ की राजनीति मे भी रमन सिंह को माहिर कहा जाता है। यही वजह है कि प्रदेश मे किसी भी भाजपा नेता ने अब तक उनके विरुद्ध गुटबाजी करने का दुस्साहस नही किया। और यदि किसी ने अपने बलबूते असंतोष ज़ाहिर किया भी तो उसको या तो उसके क्षेत्र की राजनीति तक ही सीमित कर दिया गया अथवा पार्टी हाईकमान से झिड़की दिलवा दी गयी।
रमन सिंह को मिस्टर क्लीन कहा जाता है। अभी तक उनकी राजनैतिक छवि बेदाग रही है। यहाँ तक की बोलते समय भी वे पार्टी के विचारों को अधिक प्रकट करते हैं और स्वयं की महत्वाकांक्षाओं को उद्घृत करने से बचते हैं। पार्टी सूत्र कहते हैं की भाजपा मे बोलने वाले नेताओं की लंबी कतार है परंतु कुछ कर के दिखाने वाले लोगों मे रमन सिंह गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी से कंधे से कंधा मिलते हुए नज़र आते हैं। कहा जाता है की रमन सिंह ना केवल पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के चहेते हैं बल्कि भाजपा के पी एम-इन-वेटिंग लाल कृष्ण आडवाणी को भी उनकी कार्यशैली पसंद आती है।
ये रमन सिंह की उपलब्धि ही कही जाती है कि उनके द्वारा प्रदेश मे ग़रीबों के लिए लागू की गयी तीन रुपये किलो चावल की सफल योजना को पार्टी लोक सभा चुनाव जीतने पर पूरे देश मे लागू करने की बात कह रही है। पार्टी कार्यकर्ता कहते हैं की रमन सिंह मे वो सारी खूबियाँ मौज़ूद हैं जो एक राष्ट्रीय स्तर के नेता मे होना चाहिए मगर वे पार्टी आलाकमान के समक्ष अपनी इच्छाओं को बोल कर प्रदर्शित करने के बजाय उन्हें अपने कर्मों से संप्रेषित करने मे ज़्यादा विश्वास रखते हैं। कहने वाले कह रहे हैं कि वैसे भी केंद्र मे राजनीति करने का फ़ैसला करने के लिए उनके पास पर्याप्त समय है क्योंकि सन 2014 के आम चुनाव के पहले सन 2013 मे छत्तीसगढ़ मे विधान सभा चुनाव होना है जिसके परिणाम के अनुरूप ही रमन सिंह कोई राजनैतिक कदम उठाने की सोचेंगे।
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