Wednesday, July 28, 2010

ज़हर उगल रहे हैं छत्तीसगढ़ के अधिकांश उद्योग

रायपुर।

छत्तीसगढ़ मे औद्योगिक प्रदूषण से आम जनता का जीना मुश्किल हो गया है, इसके बावजूद सरकार है कि वायदों और घोषणाओं के सिवाय कुछ नही कर रही है। औद्योगिक प्रदूषण की सबसे अधिक मार राजधानी रायपुर मे पड़ी है क्योंकि इससे लगे हुए औद्योगिक क्षेत्र उरला एवं सिलतरा मे स्पंज आयरन फ़ैक्टरियों सहित विभिन्न प्रकार के उद्योग पिछले दो दशकों मे द्रुत गति से स्थापित हुए हैं। इस वजह से ना केवल राजधानी अपितु इसके आसपास के क्षेत्रों मे भी फ़ैक्टरियों से निकला काली धूल वातावरण मे घुल गई है जिससे लोगों के स्वास्थ्य पर जानलेवा प्रभाव पड़ रहा है। यही हाल प्रदेश के अन्य औद्योगिक क्षेत्रों जैसे भिलाई, कोरबा, रायगढ़, बस्तर, आदि का भी है। प्रदेश मे पर्यावरण प्रदूषण के मापन तथा उसके नियंत्रण के लिए गठित पर्यावरण संरक्षण मंडल भी प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के विरुद्ध कार्रवाई में कोई दिलचस्पी नही दिखा रहा है। अब राज्य की जनता असमंजस मे है कि वो अपनी गुहार लगाए तो आख़िर किससे?

उधर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने औद्योगिक प्रदूषण की रोकथाम के लिए सभी उद्योगों को पर्यावरण नियमों का गंभीरता से पालन करने के लिए फिर से चेताते हुए कहा है की सभी उद्योगों को वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण जैसे ई.एस.पी., आदि का इस्तेमाल करना अनिवार्य है। आवास एवं पर्यावरण, परिवहन तथा नगरीय प्रशासन मंत्री राजेश मूणत ने भी कड़े तेवर दिखाते हुए प्रदेश के उद्योगपतियों को दो टूक शब्दों मे कह दिया है कि प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की खैर नही है लेकिन इसका कोई असर नही दिखा। औद्योगिक इकाईयों को इसकी कोई भी चिंता नही है। उन्हें इस बात से भी मतलब नही है कि उनकी मनमानी जनस्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। जहां एक तरफ अरबों रूपये जनस्वास्थ्य की रक्षा के लिए भारत सरकार खर्च कर रही है वहीं कुछ खर्चा बचाने के लिए ये औद्योगिक इकाईयां सारी हदें पार कर रहीं हैं।

रायपुर जिले के अंतर्गत व सिलतरा से लगे धरसीवा विधानसभा क्षेत्र के विधायक देवजी भाई पटेल का कहना है कि सरकार को अब कोरी बातों से तौबा करना चाहिए और प्रदेश को औद्योगिक प्रदूषण से मुक्त करने का कोई ठोस उपाय करना चाहिए। पटेल कहते हैं कि वे पिछले पाँच वर्षों से अनवरत औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ आवाज़ उठाते रहे हैं परंतु उनकी अपनी भाजपा सरकार के कान मे जूँ तक नही रेंगी, जिसकी वजह से प्रदेश के उद्योगपति खुलेआम पर्यावरण के नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं। पटेल इस बात से भी हैरान हैं कि उनके औद्योगिक प्रदूषण विरोधी आंदोलन के जगजाहिर होने के बावजूद ना तो कभी मुख्यमंत्री और ना ही पर्यावरण मंत्री ने उनसे इस विषय मे वार्तालाप करने के ज़रूरत महसूस की जबकि वे अपनी तरफ से सरकार को प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों पर लगाम कसने के लिए समय-समय पर सचेत करते रहे हैं।

पटेल ने पर्यावरण संरक्षण मंडल को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि मंडल पर्यावरण के नियमों से खेलने वाले उद्योगपतियों की करतूतों से वाकिफ़ होते हुए भी हमेशा की तरह हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए है। अकेले सिलतरा के उद्योगों मे एक लाख टन से भी ज़्यादा का कोयला उपयोग मे लाया जाता है जिससे वेस्ट के रूप मे राख निकलती है परंतु मंडल का वेस्ट मेनेजमेंट का फंडा भी उस क्षेत्र के लोगों को उड़ती हुई राख से निजात नही दिला पाया। नियमानुसार दो स्पंज आयरन फ़ैक्टरियों के मध्य न्यूनतम 8-10 किलोमीटर की दूरी होना चाहिए परंतु सिलतरा मे इस तरह की 40 से भी अधिक इकाइयों के लिए भूमि आबंटन 20 किलोमीटर के दायरे मे किया गया जिससे पता चलता है कि जिससे पता चलता है की प्रदेश मे औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरण के नियमों मे किस हद तक लापरवाही बरती गई।

छत्तीसगढ़ में औद्योगिक प्रदूषण से प्रभावित होने वाले गाँवों की संख्या 50 से भी अधिक है। पटेल का कहना है कि उन्होने समस्त ग्रामवासियों के साथ मिलकर यह निर्णय लिया है कि अब वे इस विषय मे बात करने के लिए किसी भी मंत्री या अधिकारी के पास नही जाएँगे वरन इसका विरोध जनजागरण अभियान चलाकर करेंगे। इस सब के बावजूद अगर सरकार प्रदेश मे औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने मे असफल होती है तो भविष्य मे आम जनता की सेहत जवाब दे जाएगी, इसकी जवाबदेही किसकी होगी यह सभी जानते हैं। इस राज्य में शासनतंत्र की इस तरह की नाकामियां धीरे-धीरे सामने आ रहीं हैं हर कोई जान रहा है कि अब आम जनता को कोई पूछने वाला नहीं है क्योंकि उससे मतलब निकल चुका है। यह मामला गंभीरता से एक रोष के रूप में बढ़ रहा है।

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