Wednesday, July 28, 2010

छत्तीसगढ़ में निजी कालेजों की बीएड कोर्स से मोटी कमाई

रायपुर।

छत्तीसगढ़ मे जब से राज्य सरकार ने स्कूल शिक्षक बनने के लिए बीएड की उपाधि को अनिवार्य किया है तब से यह पाठ्यक्रम निजी कॉलेजों के लिए मोटी कमाई का जरिया बन गया है। प्रदेश मे नित नये खुलते प्राइवेट कालेजों मे यूं तो व्यवसायिक पाठ्यक्रमों की लंबी फेहरिस्त होती है परंतु इस सूची मे बीएड का अलग ही आकर्षण है क्योंकि इस एक वर्षीय कोर्स के लिए मारा मारी है और इससे निजी संस्थानों की जमकर कमाई होती है। चाहे वह फीस के रूप मे हो या विभिन्न प्रकार के शुल्क के रूप मे। आश्चर्य की बात यह है कि इन संस्थानों के इस खुले आम धंधे पर लगाम कसने वाला कोई नही दिख रहा है।
राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) के अधिकारियों के अनुसार प्राइवेट कालेजों चलाए जा रहे बीएड कोर्स की फीस तथा नाना प्रकार के शुल्क निर्धारण संबंधी आंतरिक निर्णयों मे न तो परिषद हस्तक्षेप कर सकता है और न ही विश्वविद्यालय कोई कार्रवाई कर सकता है। परंतु यदि किसी निजी कालेज मे बीएड कोर्स के लिए आवश्यक एवं नियमानुसार अधोसंरचना न हो, शिक्षकों की पर्याप्त संख्या न हो तथा अन्य किसी नियमों की अवहेलना की गयी हो तब एससीईआरटी व संबंधित विश्वविद्यालय इन कालेज के खिलाफ उचित कदम उठाने मे सक्षम है।
प्रदेश मे वैसे भी निजी शिक्षण संस्थानों की बाढ़ सी आई हुई है और ये सभी उन्हीं व्यवसायिक पाठ्यक्रमों को अपने यहां तरजीह देते हैं जिनसे उनका उत्तरोत्तर लाभ हो सके। इधर सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि शिक्षण संस्थानों को अपने यहाँ व्यावसायिक पाठ्यक्रम प्रारंभ करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वे ऐसे कोर्स बिना लाभ कमाए और बिना हानि उठाए चलाएं। परंतु एससीईआरटी के अनुसार निजी कालेजों को बीएड की फीस अपने मन-मुताबिक निर्धारित करने की छूट है एवं न तो राज्य सरकार ने और न ही सुप्रीम कोर्ट ने इस कोर्स के फीस की कोई उच्चतम सीमा तय की है।
वर्तमान मे प्रदेश के 61 निजी व शासकीय कालेजों मे बीएड कोर्स चलाया जा रहा है जिनमे सीटों की कुल संख्या 6288 है। एससीईआरटी का अनुमान है की इस सत्र मे कम-से-कम पाँच और निजी कालेजों को बीएड प्रारंभ करने की इजाज़त मिल सकती है जिससे इस कोर्स की कुल सीटों की संख्या मे लगभग 500 सेटों का इज़ाफा हो सकता है। प्रदेश के बीएड कालेजों मे छत्तीसगढ़ के अभ्यर्थियों के अलावा अन्य प्रांतों के उम्मीदवार भी दाखिला ले सकते हैं।
दरअसल निजी कालेजों को फ़ायदा भी बाहरी प्रदेशों के छात्रों को प्रवेश देने से होता है क्योंकि उनकी फीस छत्तीसगढ़ के प्रत्याशियों की तुलना मे कहीं अधिक होती है। वर्तमान मे प्रदेश के सबसे अधिक बीएड कालेज दुर्ग मे हैं जिनकी संख्या 21 है। वहीं राजधानी रायपुर मे 19 बीएड कालेज संचालित हो रहे हैं। फीस के मामले मे शासकीय कालेज निजी शिक्षण संस्थानों के मुक़ाबले कहीं नही ठहरते क्योंकि इनमे प्रवेश के लिए उम्मीदवार को केवल 3245 रुपये सालाना देने पड़ते हैं और यदि उसे छात्रावास की सुविधा भी चाहिए तो उसका कुल प्रवेश शुक्ल 5145 रुपये सालाना होता है। उधर निजी कालेज मे प्रवेश के लिए छत्तीसगढ़ के उम्मीदवार को अधिकतम 30,000 रुपये सालाना तथा न्यूनतम 16,750 रुपये सालाना खर्च करना पड़ता है। वहीं दूसरे प्रदेश के अभ्यर्थियों को अधिकतम 57,000 रुपये सालाना तथा न्यूनतम 25,000 रुपये सालाना फीस देना पड़ता है। इतना अधिक फीस होने के बावजूद पिछले कुछ वर्षों से छत्तीसगढ़ मे दूसरे राज्य से आकर पड़ने वाले छात्रों की संख्या मे अच्छी ख़ासी बढ़ोतरी हुई है क्योंकि अन्य प्रदेशों की तुलना मे न तो यहां जातीय तथा धार्मिक दंगे होते हैं न ही यहां के लोगों मे क्षेत्रवाद की भावना है।
प्रदेश मे बीएड की प्रवेश परीक्षा व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) संचालित करती है और उम्मीदवारों की काउंस‍‍लिंग की ज़िम्मेदारी एससीईआरटी की है। पिछले वर्ष तक काउंस‍‍लिंग पारंपरिक ढंग से की जा रही थी जिसके तहत एससीईआरटी के सदस्यों का पैनल प्रत्याशियों का इंटरव्यू लेकर उनके शैक्षणिक योग्यता के मूल दस्तावेज़ों की जांच-पड़ताल करता था। परंतु इस वर्ष एससीईआरटी ने अभ्यर्थियों का ऑनलाइन काउंस‍‍लिंग करने का निर्णय लिया है और इस प्रक्रिया को संचालित करने लिए एमकेसीएल(महाराष्ट्र नॉलेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड) की सेवाएं ली जा रही हैं। ऑनलाइन काउंस‍‍लिंग जुलाई के दूसरे साप्ताह से प्रारंभ की जाएगी। चयन प्रक्रिया हमेशा की तरह इस बार भी मेरिट के आधार पर होगी परंतु इस बार प्रत्याशियों को अपने मूल दस्तावेज़ों को एससीईआरटी के पैनल सदस्यों के समक्ष पेश न करके सीधे उस कालेज मे जमा करना होगा जहां उन्हें दाखिला मिल रहा होगा।
अभ्यर्थियों से तगड़ी फीस ऐंठने के पश्चात शुरू होते हैं बीएड कालेजों मे अन्य तरह के वसूली अभियान जिसके एवज मे मिलता है छात्रों को विशेष सुविधाओं का लाभ उठाने का मौका। इन सुविधाओं के अंतर्गत यदि किसी छात्र की कक्षा मे उपस्थिति वर्ष भर मे 50 प्रतिशत से कम है तब भी उसे वार्षिक परीक्षा मे शामिल होने का मौका मिलता है। हालाकि नियमानुसार छात्र परीक्षा मे बैठने का अवसर खो देते हैं, यदि उनकी कक्षा मे उपस्थिति 75 प्रतिशत से कम दर्ज की जाती है। परंतु निजी कालेजों मे यह सब आसानी से संभव हो जाता है क्योंकि कम उपस्थिति वाले छात्रों की रजिस्टर मे 75 प्रतिशत से उपर उपस्थिति दिखाने के लिए ये संस्थान उनसे खूब पैसा वसूलते हैं। छात्रों को भी पैसा देना नही अखरता क्योंकि उनमें से ज़्यादातर या तो कामकाज़ी होते हैं अथवा परिवार वाली महिलाएं होतीं हैं।
यही हाल प्रायोगिक कक्षाओं तथा प्रॉजेक्ट का है। यदि किसी कारणवश कोई छात्र प्रायोगिक कक्षाओं मे अनुपस्थित रहता है तो उसे उन सभी कक्षाओं मे उपस्थित दिखा दिया जाता है और वो भी केवल थोड़े पैसों के एवज मे। इसी तरह कई छात्र प्रोजेक्ट बनाने मे समय नष्ट करने के बजाय अपने प्राध्यापकों से मिलीभगत करके अपने सीनियर छात्रों का प्रोजेक्ट खरीद लेते हैं। किंतु इस तरह का मार्ग अख्तियार करने वाले लोग कैसे बीएड मे पढ़ाए जाने वाले विषयों को आत्मसात कर पाएंगे, कैसे व्यावहारिक ज्ञान अर्जित कर पाएंगे और कैसे आदर्श शिक्षक बनकर स्कूलों मे पढ़ा पाएंगे यह एक सोचनीय मसला है।
यह भी गौर करने वाली बात है कि क्या इस प्रकार से पैसों से हासिल की गई डिग्री से किसी का कोई प्रायोजन सिद्ध होता है? निश्चित रूप से छात्रों को तो इससे लाभ ही मिलता है क्योंकि उन्हें तो किसी भी स्कूल मे पढ़ाने के लिए बैठे बिठाए आवश्यक डिग्री मिल जाती है। परंतु जिस प्रायोजन से शिक्षाविदों ने, सरकार ने बीएड कोर्स प्रारंभ किया है उसका क्या? तो क्या सरकार ने स्कूल शिक्षकों के लिए बीएड की शैक्षणिक योग्यता इसलिए अनिवार्य किया है ताकि इस कोर्स के द्वारा द्रव्य लाभ उठाकर निजी शिक्षण संस्थान प्रदेश और देश को अकुशल, अप्रशिक्षित शिक्षक देंगे।
इस प्रकार उन हज़ारों, लाखों ग़रीब और मेधावी बच्चों के भविष्य का क्या होगा जिन्हें संवारने की ज़िम्मेदारी सरकार ऐसे अकुशल शिक्षकों को मिलेगी और फिर जो पैसों के दम पर डिग्री प्राप्त कर पाते हैं उनसे कैसे उम्मीद करेंगे कि वे प्रदेश और देश के कोने-कोने मे शिक्षा के दीप प्रज्ज्वलित कर पाएंगे? यदि सरकार इन हालातों से वाकिफ़ होते हुए भी निजी कालेजों की मनमानी से आंखें फेर लेना चाहती है तो आम आदमी अपनी शिकायत लेकर कहां भटकेगा यह कोई नही जानता।

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