Wednesday, July 28, 2010

छत्तीसगढ़: उद्योगों की पर्यावरण में दिलचस्पी कहां?

रायपुर। छत्तीसगढ़ के उद्यमियों ने प्रदेश सरकार से आग्रह किया है कि राज्य की वर्ष 2009-14 की औद्योगिक नीति निर्धारित करते समय उनकी कुछ महत्वपूर्ण माँगों को ध्यान मे रखा जाय जैसे - लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्योगों को कच्चे माल की आपूर्ति सुनिश्चित करना, उद्योगों को विशेष पैकेज देने के साथ साथ विभिन्न प्रकार के करों मे रियायत प्रदान करना और घरेलू उद्योगों के संरक्षण के उपायों संबंधी प्रावधानों को प्राथमिकता देना है। इसके बदले मे उद्योगपतियों ने वादा किया है कि प्रदेश मे पर्यावरण प्रदूषण की समस्या के समाधान के लिए वे राज्य शासन के साथ कदम से कदम मिलकर चलने का प्रयास करेंगे।
उद्योगपति उम्मीद कर रहे हैं कि सरकार उनकी बात मान लेगी क्योंकि प्रदेश मे औद्योगीकरण के विस्तार के लिए प्रतिबद्ध राज्य शासन इस बात से पूर्णतया वाकिफ़ है कि उद्योगों की सुविधाओं मे इज़ाफ़ा करने से राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर के उद्योग समूह छत्तीसगढ़ मे निवेश करने के लिए तत्परता से आगे आएंगे। परंतु एक अर्से से औद्योगिक प्रदूषण की समस्या से जूझ रही राज्य सरकार अब भी संशय की स्थिति मे है क्योंकि उसे लगता है कि पर्यावरण के नियमों को ताक पर रखने वाले अधिकांश उद्योग भविष्य मे भी सुधरेंगे इसकी गुंजाइश कम ही है।
इसके बावजूद राज्य के उद्योग विभाग के सचिव पी. रमेश कुमार ने उद्योगों को कच्चा माल उपलब्ध कराने के लिए नयी औद्योगिक नीति मे पुख़्ता इंतज़ाम सुनिश्चित करने का आश्वासन दिया है। उन्होने कहा कि औद्योगिक नीति का प्रारूप तैयार करते समय उद्योगपतियों के बहुमूल्य सुझावों को अवश्य ध्यान मे रखा जाएगा। उद्योग विभाग ऐसी स्पष्ट नीति बनाने का प्रयास करेगा जिससे इसके क्रियान्वयन मे कोई कठिनाई नही आए।
उधर उद्योग विभाग के कुछ अधिकारियों का मानना है कि उद्योगपति पर्यावरण संरक्षण का राग हमेशा से अलापते आए हैं परंतु पर्यावरण के नियम- क़ायदों को मानने वाले उद्योगों की संख्या ना के बराबर है। वन विभाग के अधिकारियों का भी कहना है कि औद्योगिक प्रदूषण के रोकथाम के लिए राज्य शासन के वृक्षारोपण जैसे जनजागरण अभियान मे प्रदेश के गिने-चुने उद्योग ही दिलचस्पी दिखाते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है राज्य सरकार द्वारा प्रदेश के 14 विभिन्न उद्योग प्रबंधनों को वर्ष 2008 मे सड़कों के किनारे दिया गया 814 किलोमीटर वृक्षारोपण का लक्ष्य, जिसे हासिल करने के लिए इन उद्योगों ने शुरुआत तो बड़े ज़ोरशोर से की, परंतु उनका उत्साह केवल 123 किलोमीटर क्षेत्र मे पौधे लगाने के पश्चात काफूर हो गया। इससे पहले भी इन्हीं उद्योगों को वर्ष 2006 मे सड़क के किनारे 800 किलोमीटर वृक्षारोपण का लक्ष्य दिया गया था, परंतु वे 56 किलोमीटर से अधिक पौधा रोपित नहीं कर पाए। यही हाल वर्ष 2007 का रहा, जब राज्य शासन ने फिर भरोसा जताते हुए इन उद्योगों को 391 किलोमीटर वृक्षारोपण का लक्ष्य दिया जिसके विरुद्ध वे केवल 110 किलोमीटर की लंबाई तक ही अपनी सफलता के झंडे गाड़ पाए।
तीन वर्ष पहले जब राज्य सरकार ने उद्योगों को अपने वृक्षारोपण अभियान से जोड़ने का विचार किया तब उसने बहुत सावधानीपूर्वक प्रदेश के 14 चुनिंदा उद्योग प्रबंधनों को अलग अलग लक्ष्य देने का फ़ैसला किया। इन उद्योगों मे न केवल जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड (जेएसपीएल) जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के सुविख्यात औद्योगिक घराने थे बल्कि केंद्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रम जैसे राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम लिमिटेड (एनटीपीसी), दक्षिण पूर्वी कोयला प्रक्षेत्र लिमिटेड (एसइसीएल), भिलाई इस्पात संयंत्र (बीएसपी) तथा केंद्रीय उपक्रम राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) भी शामिल थे। सरकार के लक्ष्य को केवल जिंदल समूह ही शत-प्रतिशत हासिल कर पाया। जेएसपीएल के वाइस-प्रेसीडेंट प्रदीप टंडन का कहना है कि जिंदल समूह को सरकार ने वर्ष 2006 मे 100 किलोमीटर वृक्षारोपण का लक्ष्य तीन वर्षों मे पूर्ण करने के लिए दिया था जिसमे वे पूर्णतया सफल हुए।
उद्योगों के पर्यावरण की अनदेखी करने की आदत से प्रदेश के राज्यपाल ईएल नरसिम्हन भी नाराज़ हैं और उन्होंने राज्य सरकार को सख़्त हिदायत दी है कि वह औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए जल्द से जल्द कोई प्रभावी कदम उठाए। नरसिम्हन ने राज्य सरकार को स्पष्ट रूप से कहा है कि वह प्रदेश मे आर्थिक एवं औद्योगिक उत्थान के कार्य आम नागरिकों के स्वास्थ्य के एवज मे हरगिज़ ना करे। बहरहाल, उद्योगपति इस बार प्रदेश के पर्यावरण संरक्षण मे अपना योगदान देने के लिए पहले की अपेक्षा अधिक गंभीरता दिखा रहे हैं और शायद यही वजह है कि उन्होनें स्वयं ही राज्य शासन के समक्ष यह प्रस्ताव रखा है कि औद्योगिक क्षेत्रों मे प्रति एकड़ एक-एक सौ वृक्ष लगाये जाना चाहिए। परंतु सरकार इस उहापोह मे है कि यदि उद्योगपति पूर्व की भाँति इस बार भी पर्यावरण संरक्षण के कार्यक्रमों को शुरू करने के पश्चात बीच मे ही अधूरा छोड़ गये तो वह प्रदेश की जनता को औद्योगिक प्रदूषण से मुक्ति कैसे दिला पाएगी?

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