Wednesday, July 28, 2010

अर्थ मेटर्स का ‘हाथी ग्राम’ बनाने का सुझाव

रायपुर।


छत्तीसगढ़ के ग्रामीण अँचलों मे जंगली हाथियों का बर्बर उत्पात दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है। इससे निपटने के लिए समाज सेवी संस्था अर्थ मेटर्स फाउंडेशन ने राज्य सरकार को ‘हाथी ग्राम’ विकसित करने का सुझाव दिया है। मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस सुझाव पर अपनी सैद्धांतिक सहमति दे दी है। अर्थ मेटर्स फाउंडेशन वही संस्था है, जिसके साथ लगभग डेढ़ वर्ष पहले 29 दिसंबर 2007 को राज्य सरकार ने जंगली हाथियों की समस्या से निजात पाने के लिए प्रतिवेदन तैयार करने के उद्देश्य से एक समझौता (एम.ओ.यू.) किया था।
संस्था के प्रमुख माइक पांडेय के अनुसार प्रदेश मे हाथी ग्राम विकसित करने मे लगभग आठ करोड़ रुपए का खर्च आएगा और यह परियोजना कम-से-कम तीन वर्ष की अवधि मे पूर्ण होगी। हाथी ग्रामों मे हिंसक हाथियों के अलावा वृद्ध और बीमार हाथियों को भी रखा जाएगा। पांडेय बताते हैं कि हाथी ग्राम बसाने के लिए अचनकमार, बदलखोल, भोरमदेव, सेमसोत और तेमेरपिंगला जैसे अभ्यारण्यों और गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान और मैनपाट के वन क्षेत्रों मे उपयुक्त स्थान चिन्हांकित किया जा सकता है। इनमे से प्रत्येक मे 40 से 50 हाथियों के लिए लगभग एक हज़ार एकड़ वन क्षेत्र मे शेड निर्माण, जल स्त्रोत निर्माण, अधिक से अधिक मिश्रित स्थानीय प्रजाति के बाँस, महुआ, पीपल, आदि के वृक्ष लगाए जा सकते हैं।
इस परियोजना मे महावतों एवं उनके परिवारों का भी विशेष ख्याल रखा गया है जिसके तहत हरेक हाथी ग्राम मे उनके लिए लगभग 500 एकड़ क्षेत्र मे चिकित्सा सुविधा युक्त आवास निर्माण, महावत प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना, हाथियों के इलाज के लिए अस्पताल, ग्रामीणों की सुविधा के लिए सौर उर्जा संयंत्र, बायो गैस संयंत्र, आदि की स्थापना का प्रावधान होगा।
संस्था ने अपने प्रतिवेदन मे और भी कई सुझाव दिए, जिनमे जंगली हाथियों से निपटने के लिए हल्ला पार्टी की मदद से परंपरागत ढंग से ढोल बजा कर, मशाल की मदद से उन्हें वनों मे खदेड़ना, पटाखों और टार्च की तेज रोशनी से हाथी निरोधी दस्ते के मार्गदर्शन मे हाथियों को रिहायशी क्षेत्रों से दूर वनों मे भगाना, वन विभाग के अमले, वन प्रबंधन समिति और हाथी निरोधी दस्ते का जंगली हाथियों के विचरण पर निगाह रखना, ग्रामीणों को भूमिगत अन्न भंडारों के निर्माण मे मदद करना, हिंसक जंगली हाथियों को ट्रंक्वीलाइज़ेर से बेहोश कर उनमे कॉलर आईडी लगाकर उनके आवागमन की निगरानी करना, प्रभावित परिवारों के लिए समुचित आर्थिक सहायता पॅकेज, फसल पर धावा बोलने वाले जंगली हाथियों को पालतू हाथियों की मदद से नियंत्रित करना जैसे उपाय शामिल हैं।
उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ सबसे पहले वर्ष 1988 मे 18 हाथियों का झुंड पड़ोसी राज्य झारखंड से आया था। वर्ष 1993-94 मे कर्नाटक के विशेषज्ञों की मदद से तेरह हाथियों को विशेष अभियान चलाकर पकड़ा गया। विशेषज्ञों के अनुसार अब हाथियों ने छत्तीसगढ़ मे अपना स्थायी रहवास बना लिया है। समस्या को गंभीरता से लेते हुए छत्तीसगढ़ विधानसभा मे फ़रवरी-मार्च 2005 के सत्र मे रायगढ़, जशपुर और कोरबा जिलों मे हाथी परियोजना के अंतर्गत राज्य मे हाथी अभ्यारण्य बनाने के लिए केंद्र सरकार से अनुमति और आर्थिक सहयोग प्राप्त करने हेतु अशासकीय संकल्प पारित किया गया। केंद्रीय वन और पर्यावरण मंत्रालय की उच्च स्तरीय समिति ने छत्तीसगढ़ को हाथी प्रॉजेक्ट मे शामिल करने के लिए प्रस्तावित हाथी रिज़र्व क्षेत्रों का मार्च 2007 मे दौरा किया जिसके अनुसरण मे राज्य को हाथी परियोजना मे शामिल करने और दो हाथी रिज़र्व - क्रमश: बदलखोल- मनोरा-तेमेरपिंगला और लेमरु को बनाने की सहमति भारत सरकार से प्राप्त हुई।

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