हथियार छोड़े बिना उनसे बातचीत निरर्थक
प्रधानमंत्री की बैठक में मुख्यमंत्री ने नक्सल क्षेत्रों के नये जिलों के लिए मांगा विशेष पैकेज
Jul 14, 2010
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने एक बार फिर कहा है कि लोकतंत्र
की रक्षा के लिए नक्सलियों से आर-पार की लड़ाई अनिवार्य हो गयी है। डॉ.
रमन सिंह ने कहा कि जब तक नक्सलवादी बन्दूक छोड़ कर भारतीय संविधान पर
आस्था नहीं जताते और लोकतांत्रिक तौर-तरीकों को नहीं अपनाते, तब तक उनसे
बातचीत निरर्थक ही रहेगी। डॉ. रमन सिंह ने आज नई दिल्ली में प्रधानमंत्री
डाॅ. मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आयोजित देश के नक्सल प्रभावित
राज्यों के मुख्यमंत्रियों की विशेष बैठक में यह भी दोहराया कि नक्सलवाद
और आतंकवाद एक ही सिक्के के दो पहलू है। डॉ. रमन सिंह ने बैठक में राज्य
के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के दो नये जिलों बीजापुर और नारायणपुर तथा
तीन नये पुलिस जिलों - बलरामपुर, सूरजपुर और गरियाबंद के लिए प्रत्येक
जिले के हिसाब से दो सौ करोड़ रूपए के विशेष पैकेज की भी मांग रखी।
उतर चुका है नक्सलियों का मुखौटा
मुख्यमंत्री ने कहा कि नक्सलवादियों, उनके सहयोगियों और हमदर्दों की
कथनी और करनी को जनता के समाने लाने का जो सिलसिला छत्तीसगढ़ में छह साल
पहले शुरू हुआ था, उसके कारण अब नक्सलियों का मुखौटा पूरी तरह उतर चुका
है। उनकी हिंसक गतिविधियों से यह स्पष्ट हो गया है कि माओवादियों द्वारा
आम आदमी के हित में बातें करना एक छलावा है। हकीकत यह है कि उनके द्वारा
आम आदमी ही मारा जा रहा है। विकास की हर इकाई को ध्वस्त किया जा रहा है।
इसलिए हमने नक्सलियों सख्ती से निपटने की नीति बनायी है। हमने सरकार में
आते ही यह मन बना लिया था कि उनसे आर-पार की लड़ाई लड़नी होगी। देश को,
उसके संवैधानिक ढांचे को, लोकतंत्र को और लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाने
के लिए यह अनिवार्य है। डाॅ. रमन सिंह ने यह भी कहा कि अब देश को इस
दुविधा से उबरना होगा कि यह किसी राज्य विशेष अंदरूनी मामला है।
प्रधानमंत्री ने भी इसे देश की आतंरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा
बताया है और हमने भी इससे निबटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित
रणनीति की जरूरत बतायी है।
नक्सल हमदर्दों के दुष्प्रचार का जोरदार खण्डन
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री की बैठक में अपनी बात रखते
हुए नक्सलियों और उनके हमदर्द कुछ बुद्धिजीवियों के इस दुष्प्रचार का
जोरदार शब्दों में खण्डन किया कि बस्तर में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और
निजी उद्योगपतियों को मूल्यवान खनिजों से भरी जमीनें दी जाती है। डॉ. रमन
सिंह ने बैठक में कहा कि वस्तु स्थिति यह है कि पिछले 50 साल में कोई भी
बहुराष्ट्रीय कम्पनी एक किलो लौह अयस्क भी नहीं ले गयी है। लगभग 40 हजार
वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाले बस्तर अंचल में सिर्फ एक प्रतिशत जमीन
खनिजों के उत्खनन और प्राॅसपेक्टिंग के लिए दी गयी है, वह भी सिर्फ
राष्ट्रीय खनिज विकास निगम, भारतीय इस्पात प्राधिकरण और छत्तीसगढ़ खनिज
विकास निगम जैसे सार्वजनिक उपक्रमों को। डॉ. रमन सिंह ने कहा कि वास्तव
में यह दुःख का विषय है कि नक्सलियों की हिंसक और अराजक पृष्ठभूमि के
बावजूद आज भी कुछ लोग उनकी मंशा को लेकर भ्रम की स्थिति में है।
प्रजातंत्र में आस्था रखने वाले कुछ ऐसे लोगों और संगठनों की व्यक्तिगत
राय में भी नक्सलियों के प्रति सहानुभूति का भाव समय-समय पर उजागर होता
रहता है। कई बार तो मुझे लगता है कि कुछ प्रभावशाली प्रबुद्ध लोग
जाने-अनजाने, राजनीतिक परिपक्वता के अभाव में भी नक्सलियों के हमदर्द बन
जाते हैं और दूरगामी परिणामों को नजरअंदाज कर उनके हाथों की कठपुतली बन
जाते हैं और उनके दुष्प्रचारों से प्रभावित हो जाते हैं।
पूरे देश को एकजुट होने की जरूरत
मुख्यमंत्री ने कहा कि नक्सल समस्या से निबटने के लिए छत्तीसगढ़ के
साथ पूरे देश को बहुआयामी और बहुस्तरीय प्रयासों के लिए एकजुट होने की
जरूरत है। यह एक बहुत बड़ी चुनौती और जिम्मेदारी हम सबके सामने है।
मुख्यमंत्री ने नक्सल समस्या के बारे में छत्तीसगढ़ सरकार के नजरिए को
स्पष्ट करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ एक नया राज्य है, जिसके संसाधनों की
अपनी सीमा है। एक ओर नक्सलियों ने अपनी सारी ताकत छत्तीसगढ़ में झोंक रखी
है, वहीं दूसरी ओर हमारा नया राज्य नक्सलवाद के खिलाफ आज सबसे बड़ी लड़ाई
लड रहा है। हम यह भली-भांति जानते हैं कि नक्सलियों से लड़ने के अलावा
हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। डॉ. रमन सिंह ने प्रधानमंत्री से कहा कि
जहां तक छत्तीसगढ़ का सवाल है, तो मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि हम
नक्सल समस्या के निदान के लिए हर पहलू पर ध्यान दे रहे हैं। पिछड़े
क्षेत्रों में अधोसंरचना विकास, बुनियादी सुविधाओं की पहुंच और
सामाजिक-आर्थिक समाधानों के लिए हमने अनेक कदम उठाए हैं, जिसके बारे में
हमने लगभग हर मंच-हर अवसर पर आपको को अवगत कराया है। मैं यह बताना चाहता
हूं कि हमारे प्रयासों का असर वनांचलों की जनता के विश्वास के रूप में
सामने आया है।
सड़क निर्माण का लक्ष्य पूर्ण होने तक बी.आर.ओ. की सेवाएं जरूरी
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने बैठक में यह भी कहा कि राज्य के नक्सल
प्रभावित इलाकों में विकास और निर्माण कार्यों के लिए विषम परिस्थितियों
में भी काम करने में सक्षम सीमा सड़क संगठन (बी.आर.ओ.) की जरूरत हमें अभी
भी है। हम चाहेंगे कि जब तक इस क्षेत्र में सड़क निर्माण का लक्ष्य पूरा
नहीं हो जाता, तब तक बी.आर.ओ. की सेवाएं हमें मिलती रहे। डॉ. रमन सिंह ने
कहा कि राज्य सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास की
समन्वित रणनीति बनायी है। उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया कि राज्य में
अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग की जनसंख्या लगभग 44 प्रतिशत है, लेकिन
छत्तीसगढ़ सरकार अपने वार्षिक बजट का करीब 45 प्रतिशत हिस्सा इन वर्गों के
विकास के लिए खर्च कर रही है। इसके अलावा आदिवासी उप योजना क्षेत्रांें
में स्थानीय जनता की मांगों और जरूरतों को पूरा करने के लिए दो विशेष
प्राधिकरणों का गठन कर उनके माध्यम से बजट के बाहर भी लगभग छह सौ करोड़
रूपए के निर्माण कार्य कराए जा चुके हैं। बस्तर डेव्हलपमेंट ग्रुप का गठन
किया गया है, ताकि नक्सली प्रभावित अंचलों की जरूरतों को पूरा करने और
विकास कार्य कराने के लिए फैसले संबंधित जिलों में ही ले लिए जाएं और
इनसे संबंधित नस्तियों को राजधानी रायपुर तक भेजने की जरूरत न पड़े।
नये जिलों के लिए विशेष पैकेज जरूरी: डॉ. रमन सिंह
डॉ. रमन सिंह ने कहा कि राज्य के नक्सल प्रभावित इलाकों में अधोसंरचना
विकास के कार्यों में तेजी आयी है, प्रशासन को आम जनता के और भी ज्यादा
नजदीक लाने के लिए दो नए राजस्व जिलों नारायणपुर और बीजापुर का गठन किया
गया है, वहीं तीन नए पुलिस जिले- बलरामपुर, सूरजपुर और गरियाबंद भी गठित
किए गए हैं। मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह से इन जिलों
में समुचित बुनियादी संरचनाओं के विकास के लिए प्रत्येक जिले को दो सौ
करोड़ रूपए का विशेष पैकेज स्वीकृत करने का अनुरोध किया। मुख्यमंत्री ने
प्रधानमंत्री को इस बात के लिए धन्यवाद भी दिया कि उनके सहयोग से
छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के समग्र विकास के लिए 4553 करोड़
रूपए की कार्य योजना स्वीकृत की जा रही है।
नक्सल क्षेत्रों में केन्द्रीय बलों के लिए भी जम्मू-कश्मीर की तरह विशेष
भत्ते की मांग
मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को यह भी बताया कि छत्तीसगढ़ में
केन्द्रीय पुलिस बलों के अधिकारियों और कर्मचारियों को अत्यंत विपरीत
परिस्थितियों में काम करना पड़ रहा है। इसलिए मेरा यह अनुरोध है कि इन्हें
उन्हीं दरों पर भत्ते और अन्य सुविधाएं दी जानी चाहिए, जिस दर पर जम्मू
और कश्मीर में दी जा रही है। डॉ. रमन सिंह ने प्रधानमंत्री से कहा कि
नक्सल हिंसा में शहीद हुए आम नागरिकों और शासकीय कर्मचारियों के लिए भी
दस लाख रूपए के मान से अनुग्रह राशि केन्द्र सरकार द्वारा दी जानी चाहिए।
इसके अलावा नक्सल हिंसा में शहीद होने वाले शासकीय कर्मचारियों के
परिजनों को केन्द्रीय सेवाओं और संगठनों में नियुक्ति के लिए आरक्षण का
प्रावधान भी किया जाना चाहिए। शहीदों के परिजनों और नक्सल प्रभावित जनता
को स्नातक स्तर तक निःशुल्क शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी तमाम बुनियादी
सुविधाएं देने के विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। छत्तीसगढ़ में हम अपने
स्तर पर सुविधाएं जुटाने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं।
विशेष बैठक के लिए प्रधानमंत्री को दिया धन्यवाद
डॉ. रमन सिंह ने प्रारंभ में इस विशेष बैठक के आयोजन के लिए
प्रधानमंत्री और केन्द्रीय गृह मंत्री को इस बात के लिए धन्यवाद दिया कि
उन्होंने माओवादियों, नक्सलवादी तत्वों की मंशा के बारे में छत्तीसगढ़ के
साथ देश के अन्य नक्सलवाद प्रभावित राज्यों के दृष्टिकोण को सही
परिपे्रक्ष्य में लिया है। डाॅ. रमन सिंह ने प्रधानमंत्री से कहा कि इस
मुद्दे पर आपने निरंतर संवाद की प्रक्रिया शुरू की है और उसी के
परिणामस्वरूप आज हमें पुनः इस विषय पर अपना नजरिया सामने रखने का अवसर
मिला है।
नक्सल सोच की जड़ें तानाशाही स्वरूप में
डॉ. रमन सिंह ने कहा कि मेरी यह स्पष्ट धारणा है कि नक्सलवाद और आतंकवाद
एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हम निर्माण करते जाएं और नक्सलवादी विध्वंस
करते रहंे, तो सारा विकास कार्य बेमानी हो जाता है। सरकार जो सुविधाएं
दूरस्थ गांव वालों के लिए जुटाए, उस पर नक्सली डाका डालते रहें तो हमारे
प्रयासों का लाभ नक्सल प्रभावित गांवों के निवासियों को मिलना मुश्किल हो
जाता है। हम यह जानते हैं कि माओवादी या नक्सलवादी सोच की जड़ें माओवाद के
तानाशाही स्वरूप में है जिसे वह एक क्रूरतम हिंसात्मक युद्ध और आतंक के
बल पर हासिल करना चाहते हैं। माओवादियों द्वारा आम आदमी के हित में बातें
करना तो बस एक छलावा है, हकीकत यह है कि माओवादियों द्वारा आम आदमी ही
मारा जा रहा है, उनके द्वारा विकास की हर इकाई को ध्वस्त किया जा रहा है।
इसलिए हमने नक्सलवादियों से सख्ती से निबटने की नीति अपनाई। हमने सरकार
में आते ही यह मन बना लिया था कि नक्सलियों से, माओवादियों से आर-पार की
लड़ाई लड़नी पड़ेगी क्योंकि यह लड़ाई न सिर्फ छत्तीसगढ़ को नक्सली आतंक से
मुक्त करने के लिये अनिवार्य है बल्कि इस देश को, उसके संवैधानिक ढांचे
को, प्रजातांत्रिक सोच व प्रजातांत्रिक मूल्यों को बचाने के लिये भी
अनिवार्य है। अब देश को इस दुविधा से उबरना होगा कि यह किसी राज्य विशेष
का अंदरूनी मामला है। यही वजह है कि आपने भी इस नक्सलवादी समस्या को देश
की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बताया है और हमने भी इससे निबटने
के लिए राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित रणनीति की आवश्यकता प्रतिपादित की है।
सहयोग और संसाधनों को बढ़ाने की जरूरत
डॉ. रमन सिंह ने यह भी कहा कि हम राज्य के संसाधनों और केन्द्र सरकार के
सहयोग से जितने भी प्रयास कर रहे हैं, उन्हें समस्या की भीषणता के अनुरूप
बढ़ाना होगा। यह बात स्पष्ट करने के लिए मैं बताना चाहूंगा कि नक्सली
ताकतों में अब कितना इजाफा हो चुका है। हमारी जानकारी के अनुसार बस्तर
में नक्सलियों की दण्डकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी में कुल 7 डिवीजन, 32
एरिया कमेटी हैं, जिसके तहत करीब 50,000 नक्सली एवं जनमिलिशिया,
प्रजातंत्र के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए हैं। देश की 40 प्रतिशत से ज्यादा
मुठभेड़ बस्तर में हुई है। नक्सली बस्तर को आधार क्षेत्र बनाना चाह रहे
हैं। वहाँ पर नक्सलियों की बटालियन बन चुकी है और अब वे अपने ब्रिग्रेड
भी बनाने की तैयारी में है। दूसरी ओर सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के
लिए हमने पुलिस का बजट 268 करोड़ से बढ़ाकर 1019 करोड़ रूपये कर दिया। पिछले
छह सालों में पुलिस बल 22000 से बढ़ाकर 49000 कर दिया है। छत्तीसगढ़ सरकार
हर साल तीन-चार हजार लोगों की भर्ती पुलिस बलों में कर रही है। विगत वर्ष
6700 लोगों की भर्ती की गई थी और इस वर्ष फिर 4000 जवानों की भर्ती की जा
रही है। इसके अलावा हमने सुरक्षाबलों को प्रशिक्षित, कुशल और सक्षम बनाने
के लिए कांकेर में जंगल वारफेयर काॅलेज खोला। एस.टी.एफ. जैसे सक्षम बल का
गठन किया, एन्टी-टेररिस्ट फोर्स का गठन किया, तीन सीएट (काउन्टर
टेरेरिज्म एवं एन्टी टेररिस्ट) स्कूल हम केन्द्र सरकार के सहयोग से एक
माह के अंदर खोलने जा रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि समय-समय पर केन्द्र
सरकार से मिलने वाली मदद से हमें काफी सहारा मिलता है। लेकिन अभी हमें
लम्बी लड़ाई लड़नी है, इसके लिए हमें काफी संसाधनों की आवश्यकता होगी।
हमारा अनुमान है कि नक्सलियों के विरूद्ध लड़ाई में कम से कम 10 बटालियनों
की तत्काल जरूरत है।
पिछले वर्ष मारे गए 119 नक्सली
डॉ. रमन सिंह ने कहा कि नक्सलियों के खिलाफ चल रही कार्यवाही और उसकी
प्रतिक्रिया के तौर पर हालांकि छत्तीसगढ़ में कुछ बड़ी घटनाएं हुई हैं
लेकिन यह भी बताना चाहूँगा कि छत्तीसगढ़ में वर्ष 2009 में 119 नक्सली
मारे गए हैं, यह संख्या देश में सर्वाधिक है। साथ ही पकड़े और मारे गये
नक्सलियों की संख्या में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। यह सब केन्द्रीय एवं
राज्य सुरक्षा बलों के अथक परिश्रम एवं बलिदान से ही संभव हुआ है। इस
लड़ाई को हमें राजनीतिक सामंजस्य और सामाजिक सहयोग के साथ लड़ना होगा। कुछ
मानव अधिकारवादियों, छद्म प्रबुद्ध वर्ग के प्रोपोगेण्डा का सहारा
नक्सलियों द्वारा लिया जा रहा है। इस मोर्चे पर भी कारगर जवाबी कार्यवाही
करते हुए हमें जनता को सच्चाई बताना होगा। हमारा दृढ़ विश्वास है कि आम
जनता के विश्वास और समर्थन से यह लड़ाई निश्चित तौर पर जीती जाएगी।
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