रायपुर।
छत्तीसगढ़ मे नक्सल मुद्दे को अपना हथियार बनाए विपक्ष का विधान सभा में लगातार हंगामा जारी है। नेता प्रतिपक्ष रवीन्द्र चौबे समेत कॉंग्रेस के 34 विधायक सरकार विरोधी नारे लगाते हुए जब सदन के गर्भ गृह मे आ गये तो वे विधान सभा के नियमानुसार स्वमेव ही निलंबित हो गए। अंतत: कॉंग्रेस सदस्यों की अनुपस्थिति मे दो बसपा विधायकों को वैकल्पिक विपक्ष मानकर सदन मे स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा कराई गई। उधर निलंबित कॉंग्रेस विधायकों ने विधान सभा से नेता प्रतिपक्ष के साथ प्रदेश कॉंग्रेस अध्यक्ष के नेतृत्व मे राज्य मे राष्ट्रपति शासन की माँग को लेकर राज्यपाल से मिलकर उन्हें ज्ञापन सौंपा।
विधान सभा की कार्रवाई तीन बार स्थगित की गई - प्रथम बार अविभाजित मध्य प्रदेश के सीतापुर के पूर्व विधायक सुखीराम को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद उनके सम्मान मे तथा अन्य दो बार विपक्ष के लगातार नारेबाज़ी करने की वजह से। इसी बीच विधान सभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक ने कॉंग्रेसी सदस्यों से कहा कि जब उन्होने स्थगन पर पहले ही सूचना दे दी थी तब वे चर्चा से क्यों भाग रहे हैं। अध्यक्ष ने कहा कि विपक्ष विधान सभा की मर्यादा के प्रतिकूल व्यवहार कर रहा है। परंतु विपक्ष ने कहा कि जब तक मुख्यमंत्री इस्तीफ़ा नही दे देते उनका विरोध प्रदर्शन जारी रहेगा।
कॉंग्रेस सदस्यों ने हद तो तब कर दी जब सदन की कार्रवाई तीसरी बार स्थगन के बाद फिर से प्रारंभ हुई। अबकी बार वे नारेबाज़ी करते हुए सदन के गर्भ गृह प्रवेश कर गए जिसके परिणामस्वरूप वे सभी निलंबित हो गए। हालाँकि कुछ ही देर बाद विधानसभा अध्यक्ष ने विपक्षी सदस्यों का निलंबन समाप्त कर दिया तथा उनसे लौट आने का आग्रह किया ताकि उनके नक्सल हिंसा पर स्थगन प्रस्ताव पर दोनों पक्ष चर्चा कर सकें परंतु वे नहीं माने। यहाँ तक कि संसदीय कार्यमंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने भी कॉंग्रेसी सदस्यों से वापस सदन आने की गुज़ारिश की परंतु उनका प्रयास भी असफल रहा। आखिरकार कॉंग्रेसियों की गैरहाजिरी मे ही स्थगन की ग्रह्यता और अनुपूरक बजट की माँगों पर चर्चा हुई।
विधान सभा अध्यक्ष ने बताया कि विपक्ष के 27 सदस्यों ने नक्सली हिंसा पर स्थगन सूचना दी थी जिनमे से उन्होनें कॉंग्रेस विधायक नन्दकुमार पटेल के स्थगन प्रस्ताव को सदन मे पढ़कर सुनाया। पटेल ने अपने प्रस्ताव मे कहा कि वैसे तो छत्तीसगढ़ मे आदिवासियों की बहुलता है परंतु वर्तमान परिस्थिति मे वे ही प्रदेश मे सबसे अधिक असुरक्षित हैं। पटेल ने कहा कि आदिवासियों पर प्रदेश मे हो रही ज़्यादती का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की नक्सली उन्हें पुलिस का मुखबिर समझकर मार देते हैं और पुलिस उन्हें नक्सली समझकर। पटेल ने मदनवाडा मे हुई नक्सल घटना का भी उल्लेख किया। इन आरोपों का जवाब गृह मंत्री ननकीराम कंवर ने दिया।
वहीं स्थगन की ग्राह्यता पर चर्चा करते हुए सत्ता पक्ष के विधायक डॉक्टर सुभाऊ कश्यप ने कहा कि न तो विपक्ष के पास कोई मुद्दा है और न ही वह नक्सल मामलों मे गंभीर दिखाई देती हैं। कश्यप कहते हैं कि विपक्ष के रवैये से तो ऐसा लगता है जैसे वह भी नक्सलियों की तरह सरकार को अस्थिर करना चाहता है। उनके अनुसार विपक्ष को घड़ियाली आँसू बहाना बंद करना चाहिए और दलगत राजनीति से उठकर सत्ता पक्ष के साथ मिलकर नक्सल मुद्दे के समाधान के लिए कोई ठोस उपाए करने चाहिएं। कश्यप कहते हैं नक्सली समस्या पर तभी काबू पाया जा सकता है जब छत्तीसगढ़ और उसके पड़ोसी राज्य मिलकर संयुक टास्क फोर्स बनाएँगे और सुनियोजित ढंग से नक्सलियों के विरुद्ध अभियान छेड़ेंगे।
बसपा विधायक सौरभ सिंह ने कहा कि नक्सल समस्या किसी राज्य विशेष की नही है बल्कि संपूर्ण देश की है और इसके निराकरण का उपाए भी राष्ट्रीय स्तर पर करना चाहिए। सौरभ कहते हैं कि नक्सलियों का दुस्साहस बढ़ता जा रहा है इसीलिए वे यूपीए अध्यक्ष से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक को धमकी देने से नही हिचकते। उन्होने सरकार से माँग की कि नक्सल मुठभेंड मे घायल लोगों को पर्याप्त सुविधा मिलना चाहिए। दोनो पक्षों को सुनने के बाद अध्यक्ष ने स्थगन प्रस्ताव अग्राह्य कर दिया।
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