रायपुर। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस बिखराव की स्थिति मे है और इसका मुख्य कारण माना जा रहा है दल के बड़े नेताओं मे सामंजस्य और एकजुटता का अभाव। इसी वजह से कांग्रेस को प्रदेश मे लगातार दो बार शर्मनाक पराजय का मुँह देखना पड़ा, पहले विधान सभा चुनाव मे और फिर लोक सभा चुनाव मे। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी से लेकर स्टार प्रचारक राहुल गाँधी जैसे धुरंधर नेताओं के एड़ी चोटी का ज़ोर लगाने के बावजूद भी कांग्रेस की झोली मे केवल एक ही संसदीय सीट आई। इसके विपरीत देश के कुछ राज्यों मे कांग्रेस का प्रदर्शन असाधारण और भाजपा का प्रदर्शन आशानुरूप नहीं रहा जिसकी वजह से लगातार दूसरी बार देश की कमान संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के ही हाथ में है। तो क्या कांग्रेस सचमुच देश मे शेर और प्रदेश मे ढेर हो गई है? जी हाँ, पार्टी की वर्तमान स्थिति तो कुछ ऐसी ही जान पड़ती है। कांग्रेस के ज़मीनी कार्यकर्ता यह मानते हैं कि प्रदेश मे पार्टी की बदहाली का सबसे बड़ा कारण है संगठन के आला नेताओं मे समन्वय की भारी कमी और विधान सभा व लोक सभा चुनाव के वक्त हुआ भितरघात।
इन्हीं सब मुद्दों एवं आगामी नगरीय निकाय व पंचायत चुनावों के सन्दर्भ मे छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष धनेंद्र साहू ने राज्य के समस्त जिला अध्यक्षों के साथ बैठक की। साहू ने हरेक जिला अध्यक्ष से उनके क्षेत्र मे लोक सभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के ग्राफ मे तेज़ी से आई गिरावट का कारण पूछा जिसके जवाब मे सभी की शिकायत एक थी - संसदीय चुनाव मे जिला संगठनों की भारी उपेक्षा की गई और प्रदेश स्तर के नेताओं के तर्ज पर जिले स्तर के नेता भी अलग-अलग खेमों मे बँटे हुए नज़र आए। जिला अध्यक्षों ने यह भी कहा कि प्रदेश मे कांग्रेस की जड़ कमज़ोर होने का एक कारण और है - चुनाव के दौरान भितरघातियों की संख्या मे रहस्मय ढंग से इज़ाफ़ा।
साहू ने सभी जिला अध्यक्षों से इस संबंध मे विस्तार से रिपोर्ट माँगी है और कहा की नगरीय निकाय व पंचायत चुनावों मे कांग्रेस के सभी नेता एकजुता दिखाएँ तथा स्थानीय मुद्दों को उछालकर राज्य सरकार को लगातार घेरे। साहू ने कहा की आगामी चुनावों मे कांग्रेस को आक्रामक रुख़ अपनाना ज़रूरी है जिससे पार्टी की प्रदेश मे धमाकेदार वापसी हो सके।
इसी बीच लोक सभा चुनाव के पहले प्रत्याशियों के चयन को लेकर भी जिला अध्यक्षों ने साहू के समक्ष अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा कि उनके राय की अनदेखी की गई जिसके परिणामस्वरूप कई सीटों पर ग़लत उम्मीदवार खड़े किए गये और भाजपा वहाँ बाज़ी मार गई। दरअसल इस लोक सभा चुनाव मे बहुत से दिग्गज कॉंग्रेसी नेता अपनी-अपनी पसंद के उम्मीदवार मैदान मे उतरना चाहते थे परंतु कांग्रेस सुप्रिमो सोनिया गाँधी के आगे उनकी एक ना चली।
इन बड़े नेताओं मे एक नाम है प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का जो अपनी पसंद के लोकसभा उम्मीदवारों की लिस्ट लेकर दस जनपथ का चक्कर लगा रहे थे पर उन्हें भी सोनिया गाँधी ने उनकी पत्नी रेणु जोगी को बिलासपुर संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार घोषित करके उन्हें शांत कर दिया। कांग्रेस मे जोगी के विरोधी गुट के लोगों ने इसे अपनी जीत मानते हुए कहा कि सोनिया गाँधी ने जोगी को एक तरह से ना केवल एक संसदीय क्षेत्र मे बाँध दिया है बल्कि उन्हें यह मौका भी दिया है कि चुनौती स्वीकार करके बिलासपुर सीट जीत कर दिखाएं और पार्टी मे अपना कद उँचा करें। बहरहाल, ना तो रेणु जोगी चुनाव जीत सकीं और ना ही अजीत जोगी प्रदेश मे वापस अपनी पुरानी जैसी धाक जमा पाए। परंतु हाँ, अपनी किरकिरी ज़रूर करा बैठे। दरअसल जोगी से खार खाए बैठे हुए कॉंग्रेसियों ने लोक सभा चुनाव की हार के तुरंत बाद उनपर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि चुनाव के दौरान जोगी अपने खेमे के लोगों के साथ कांग्रेस के कुछ प्रत्याशियों के खिलाफ वातावरण बनाते रहे जिसकी वजह से पार्टी को कई सीटों पर भारी नुकसान हुआ।
देखा जाए तो प्रदेश मे कांग्रेस पूर्ण रूप से बँटी हुई है। अजीत जोगी का अपना खेमा है जिसमे उनके समर्थन मे अद्विवासी नेताओं की लंबी कतार है। यह खेमा पार्टी मे अपना वर्चस्व कायम रखना चाहता है परंतु दूसरे गुट अब धीरे-धीरे इस खेमे पर हावी हो रहे हैं। कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा का अपना अलग खेमा है जो अजीत जोगी के खेमे का कट्टर विरोधी है। प्रदेश विधान सभा मे कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष रवीन्द्र चौबे, जो कभी अजीत जोगी के नज़दीकी माने जाते थे, ने विधान सभा चुनाव की हार के बाद तुरंत पाला बदलते हुए पार्टी अध्यक्ष धनेंद्र साहू तथा पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष चरणदास महंत का दामन थाम लिया जिससे उनका नेता प्रतिपक्ष बनने का सपना पूरा हो गया। पार्टी के वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ला का हालाँकि अलग से कोई खेमा नही है परंतु उनके चाहने वालों की कतर भी छोटी नही है। जोगी का शुक्ला से भी छत्तीस का आँकड़ा है।
कॉंग्रेसी तो यहाँ तक कहते हैं कि जोगी प्रदेश से पार्टी के एकमात्र चुने गये सांसद चरणदास महंत से बुरी तरह से चिढ़े हुए है जिसकी वजह से उन्होनें केंद्र मे महंत के मंत्री बनने के अवसर को ख़त्म करने के लिए दस जनपथ मे अपना पूरा ज़ोर लगा दिया और सफल भी हुए। खैर, छत्तीसगढ़ मे कांग्रेस की बुनियाद हिलने का कारण जो भी हो परंतु अगर पार्टी के प्रदेश तथा राष्ट्रीय स्तर के नेता सही समय पर कोई ठोस उपाय करने मे सफल ना हुए हुए तो इस दल का राज्य से सफाया होने मे वक्त नही लगेगा।
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