रायपुर। छत्तीसगढ़ मे लगातार घटते जनाधार से चिंतित कांग्रेस हाईकमान के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का चयन भी मुश्किल हो रहा है। पहले विधान सभा और फिर लोक सभा चुनाव मे मिली विफलता से अखिल भारतीय कांग्रेस समिति यूं ही सकते मे है और आगामी नगरीय निकाय एवं पंचायत चुनावों को जीतने के मकसद जल्द ही नये चेहरे को छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस समिति की कमान सौंपना उसके विचार मे है। इधर प्रदेश मे अध्यक्ष पद के लिए कई दावेदार आए हैं, परंतु पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता मानते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को बहुत सोच समझकर ही और ऐसे व्यक्ति को अध्यक्ष नियुक्त करना होगा, जो पार्टी मे सर्वमान्य हो एवं सभी वर्ग और गुट के लोगों को साथ लेकर चल सके।
बहुत से नेता छत्तीसगढ़ मे पार्टी की लगातार हार की एक वजह प्रदेश कांग्रेस की वर्तमान स्थिति को भी मानते हैं जो काफ़ी जटिल है क्योंकि इसके अंतर्गत प्रदेश अध्यक्ष के एक पद के अलावा दो अतिरिक्त पद कार्यकारी अध्यक्षों के लिए भी बनाए गये हैं। वर्तमान मे छत्तीसगढ़ कांग्रेस के अध्यक्ष धनेंद्र साहू है तथा दो कार्यकारी अध्यक्ष हैं - सत्यनारायण शर्मा और प्रदेश से दल के एकमात्र चुने गये सांसद डॉक्टर चरणदास महंत। कांग्रेसी कहते हैं कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने प्रदेश मे पार्टी की इस तरह की संरचना सभी वर्गों को संतुष्ट करने के लिए की थी परंतु उनके इस कदम से दल मे ध्रुवीकरण हो गया और चुनावों के दौरान कार्यकर्ता इस असमंजस मे पड़े रहे कि एक अध्यक्ष व दो कार्यकारी अध्यक्षों मे से किसके निर्देशों का पालन करें क्योंकि किसी की भी अवहेलना करने का मतलब था पार्टी के अनुशासन को तोड़ना।
विधान सभा चुनाव की हार के उपरांत कांग्रेस अध्यक्ष धनेंद्र साहू ने कुर्सी जाने के ख़तरे को तुरंत भाँप लिया इसलिए उन्होने स्वयं ही अपना इस्तीफ़ा पार्टी हाईकमान को दे दिया था, परंतु उनके इस्तीफ़े को अस्वीकार कर दिया गया और उन्हें लोक सभा चुनाव की तैयारी करने का निर्देश दे दिया गया। हालाँकि साहू इस बार भी पार्टी की साख बचाने मे नाकामयाब रहे परंतु कार्यकर्ताओं का कहना है कि उन्होने अपनी तरफ से पार्टी को एकसूत्र मे पिरोने के लिए कोई कोर कसर नही छोड़ी, लेकिन दल मे गुटबाजी हावी होने की वजह से उनकी पूरी मेहनत पर पानी फिर गया।
लोक सभा चुनाव के बाद हाईकमान की नज़रों मे प्रदेश के नेताओं के बारे मे बनी धारणाओं मे भारी बदलाव आया है। कार्यकारी अध्यक्ष डॉक्टर चरणदास महंत अचानक ही राष्ट्रीय नेतृत्व के चहेते बन गये, क्योंकि आम चुनाव मे प्रदेश कांग्रेस के वे एकमात्र संसदीय उम्मीदवार थे जो अपनी सीट जीतने मे कामयाब हो सके। परंतु विडम्बना देखिए कि इन्ही महंत को पार्टी ने कुछ समय पूर्व बिना किसी कारण के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया था और प्रदेश की बागडोर धनेंद्र साहू को सौंप दी थी। महंत पार्टी के इस बर्ताव से खिन्न ज़रूर थे किंतु उन्होने उस समय मौन रहना ही ठीक समझा। बहरहाल, उनके चुनाव जीतने के बाद सोनिया गाँधी ने उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल मे स्थान देने के बजाए फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव दे डाला जिसे महंत ने विनम्रतापूर्वक ठुकरा दिया। महंत के करीबी कहते हैं कि पूर्व के कड़वे अनुभवों की वजह से उनका प्रदेश अध्यक्ष पद से मोहभंग हो गया है और अब उन्हें इंतज़ार है केंद्र से मंत्री पद के प्रस्ताव का, जिससे वे छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व कर प्रदेश की जनता के लिए कुछ कर सकें।
महंत के इस रवैये से प्रदेश अध्यक्ष पद के अन्य दावेदारों में अपने लिए आशा की एक नई किरण दिखाई देने लगी है। पार्टी के दूसरे कार्यकारी अध्यक्ष सत्यनारायण शर्मा भी अध्यक्ष हासिल करना चाहते हैं, परंतु उनकी दावेदारी कमज़ोर मानी जा रही है, क्योंकि वे विधान सभा चुनाव जीतने मे विफल रहे। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खेमे से भी दो नाम प्रबलता से उभर कर आए हैं-खरसिया विधायक नंद कुमार पटेल और बिलाईगढ़ विधायक शिव डहरिया। अजीत जोगी हर हाल मे चाहेंगे कि उनके खेमे के नेता को ही अध्यक्ष पद की कुर्सी मिले जिससे उनका प्रदेश कांग्रेस मे फिर से दबदबा कायम हो जाए और इस प्रायोजन को सिद्ध करने के लिए वे एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देंगे।
अजीत जोगी के छत्तीसगढ़ प्रेम की वजह हाईकमान की उनके प्रति बेरूख़ी है। पार्टी सूत्र कहते हैं कि जोगी यह मानकर चल रहे थे कि उनके लंबे समय के राजनैतिक अनुभव और वफ़ादारी को ध्यान मे रखते हुए सोनिया गाँधी इस बार अवश्य ही उन्हें कोई राष्ट्रीय स्तर का महत्वपूर्ण कार्य सौंपेंगी, परंतु अभी तक यह हो न सका। इसी कारण चुनाव के बाद से लंबे समय तक दिल्ली मे डेरा जमाए जोगी ने प्रदेश की राजनीति मे दोबारा पैर जमाने मे ही अपनी भलाई समझी है। जोगी के विरोधी खेमे के नेताओं का कहना है कि वे इतनी आसानी से प्रदेश का रुख़ नही करते, परंतु जब आलाकमान के सामने भी उनकी दाल नही गली तो वापसी के सिवाय कोई चारा ना था। कुछ कार्यकर्ता कहते हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री रमन सिंह की बढ़ती लोकप्रियता की वजह से जोगी पहले से ही तिलमिलाए हुए हैं और विगत दो चुनावों मे उनकी लगातार फीकी पड़ती चमक के फलस्वरूप उनके गुट के दिग्गज नेता धीरे-धीरे उनसे कन्नी काटने लगे हैं। इसी कारण प्रदेश की राजनीति से उनका मान उचटने लगा था। उधर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और एआईसीसी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा भी अपनी पसंद के नेता को अध्यक्ष पद की कुर्सी पर देखना चाहते हैं।
प्रदेश कांग्रेस मे बहस भी छिड़ी हुई है कि अध्यक्ष पद के लिए कौन उपयुक्त होगा। वरिष्ठ और अनुभवी नेता अथवा युवा व उर्जावान नेता। बहुत से नेता यह मानते हैं कि यदि वरिष्टता और अनुभव को अध्यक्ष पद का आधार बनाया जाएगा तो प्रदेश मे पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल सबसे आगे हैं। परंतु शुक्ल की रूचि तो एआईसीसी मे स्थान पाने की है और इस संबंध मे हाल ही मे उन्होने सोनिया गाँधी से मुलाकात भी की। साथ ही वे पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं से भी लगातार संपर्क बनाए हुए हैं। अगर प्रदेश मे युवा नेता को मौका देने की बात करें तो कार्यकर्ता कटाक्ष करते हुए कहते हैं कि पार्टी मे तो 60 वर्ष के नेता भी स्वयं को युवा कहने से नही चूकते तो फिर 45 वर्ष से कम उम्र के नेताओं की क्या बिसात।
इसके बावजूद मानना है कि अगर प्रदेश मे पार्टी महासचिव राहुल गाँधी का युवाओं को आगे लाने का नारा चल गया तो कोई आश्चर्य नही कि अध्यक्ष पद की कुर्सी पर कोई युवा नेता ही विराजमान होगा। जानकार कहते हैं कि प्रदेश कांग्रेस को आज ऐसे नेता की ज़रूरत है जो सभी गुटों को साथ लेकर चल सके और आगामी नगरीय निकाय व पंचायत चुनावों मे जीत हासिल करके पार्टी की धूमिल होती प्रतिष्ठा को बचाने का प्रयत्न करे।
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