(प्रिय मित्रों, मेरा यह लेख आधुनिक युग के बकवाद की
श्रेणी का गरिष्ठ प्रस्तुतिकरण है, उम्मीद है आप सब इस वार्तालाप मे उलझ
कर रह जाएँगे... ..योगेश मिश्रा)
रमेश जी खानदानी भ्रष्टाचारी हैं। उनकी घ्राण शक्ति
श्वानों जैसी है। इस शक्ति का उपयोग वे धन का स्त्रोत ढूँढने मे करते हैं। सरकारी
मुलाज़िम हैं व उच्च पद पर आसीन। उनके आसपास केवल भ्रष्टाचारियों का ही जमावड़ा
रहता है। ग़रीबों को वे हिकारत भरी नज़रों से देखते हैं। कहते हैं - ये ग़रीब
इसलिए हैं क्योंकि ये कुछ करना नही चाहते, वरना हमारे देश मे तो सोना बरस रहा है, जो लूट सकते हैं वो लूट रहे हैं, ये लूट भी नही पा रहे, बड़े अभागे हैं। उनके विचार से लुटना
मूर्खता है और लूटना समझदारी।
एक दिन सुबह सुबह मुझसे टकरा गए, बोले - यार, मन खट्टा हो जाता है तुमसे मिलकर। नीरस
जिंदगी है तुम्हारी। दो-चार हज़ार रुपयों मे पूरा महीना निकाल लेते हो। फिर भी
स्वयं को शान से लेखक, कवि और पत्रकार कहते हो। बातें बड़ी बड़ी, लेकिन जेबें फटी हुईं, बड़े क़लमकार बने फिरते हो। छोड़ो यह
सब नौटंकी, मेरे साथ जुड़ जाओ, मैं तुम्हारी जिंदगी बना दूँगा।
मैने कहा - रमेश जी, मैं ठीक हूँ, मुझे आज भी थाली मे रोटी ही पसंद है, धन चबाना और पचाना मेरे बस का रोग नही।
रमेश जी बोले - अरे मूरख, आज धन कमा, कल तेरी आने वाली पीढ़ियाँ खाएँगी। मैने कहा - रमेश जी, आपमे और मुझमे केवल एक फ़र्क है - आप
धन खोजते हैं, मैं
ज्ञान।
उन्होने पूछा - क्या मतलब? मैने कहा - आपके हाथ-पैर कब्र मे लटक रहे हैं, यमराज आपके चक्कर काट रहा है, बीमारियों ने आपके शरीर को खोखला कर
दिया है, डाक्टरों
ने आपकी जीभ का स्वाद छीन लिया है, रुपये-पैसे हीरे-जवाहरात आपके पास भरे
पड़े हैं, लेकिन
खाते क्या हैं - खिचड़ी और लोगों से कहते हैं 'सादा जीवन उच्च विचार'। जब कोई आपसे धर्म की बात करता है तो
चंदा के पचास रुपए देकर अपना पिंड छुड़ा लेते हैं। आपके अनुसार भगवान बुढ़ापे मे
याद की जाने वाली चीज़ है। क्यों? जिसने जीवन दिया, उसे मृत्यु के समय याद करके उसपर उपकार करना चाहते हैं? भई वाह! आप धोखा भी दे रहे हैं तो
स्वयं को?
रमेश जी ने कहा - बातों से पेट नही भरता दोस्त, ज़रूरत के समय केवल धन ही काम आता है।
नाते-रिश्तेदार तुम्हारे खोखले समाज के पर्याय हैं। मानवता, प्रेम, विश्वास जैसी बातें भावनाओं के गहने
बनकर रह गए हैं जो पल भर मे बह जाते हैं।
मैने कहा - रमेश जी, धन की महत्ता को मैं नकार नही सकता।
परंतु जब तक इसका सदुपयोग नही होगा, यह केवल सांसारिक वासनाओं की तृप्ति का
एक साधन मात्र कहलाएगा । धन आपके कृत्रिम जीवन को भव्य बना सकता है, परंतु आपकी आंतरिक चेतना को जगा नही
सकता।
रमेश जी ने कहा - धनी दानी भी होते हैं, धर्मात्मा भी, यदि ऐसा ना होता तो देश के बड़े बड़े
धर्मस्थल कभी के नष्ट हो चुके होते।
मैने कहा - वर्तमान काल मे धर्मस्थल व्यापार का
केंद्र बनकर रह गए हैं। लोग परमात्मा को पदार्थ का लोभ देते हैं और लाभ-हानि मे
अपना साझेदार बनाते हैं। तथाकथित धनी लोग जितना दान करते हैं उससे अधिक दिखावा।
धर्म की आड़ मे आडंबर हो रहा है। आजकल के धर्मात्माओं का लक्ष्य परमात्मा को
प्रसन्न करना नही अपितु आम जनता को अपने छल से अभिभूत करना है।
रमेश जी बोले - लेकिन धार्मिक व सामाजिक कार्य
करने के उद्देश्य से स्थापित ट्रस्ट (न्यास) तो आम आदमी को लाभान्वित कर रहे हैं
ना? मैने कहा - रमेश जी, लोगों का अब ट्रस्ट (न्यास) पर से भी
ट्रस्ट (भरोसा) उठ गया है। दरअसल नेताओं व व्यापारियों के लिए ट्रस्ट वॉशिंग मशीन
की तरह होता है, उसमे
अपने काले धन डालो, थोड़ा धार्मिक-सामाजिक भावनाओं का पावडर छिड़को, धवल-उज्ज्वल धन बाहर आएगा। पहले साधारण
पाप गंगा धोती थी, अब पाप हाइ-टेक हो गया, और गंगा की टेक्नालजी पुरानी।
उन्होने कहा - इतने बड़े दार्शनिक हो तो बाबा
बन जाओ, कम-से-कम
तुम्हारा आगे का जीवन सुखपूर्वक बीतेगा। बाबाओं का जमाना है, अब तो जवान बाबा ही ज़्यादा दिखते हैं, वृद्ध बाबा धूमिल होते जा रहे हैं। तुम्हारी मूछों की लंबाई
भी
पर्याप्त है, बस
आवश्यकता है दाढ़ी की। फिर ऐसे ही बकबक करना और तुम्हारी दुकान चल पड़ेगी।
मैने कहा - यही तो मैं कह रहा हूँ, आपकी खोज केवल धन तक ही सीमित है। मार्ग कोई भी हो - संसारिक या अध्यात्मिक, आप जैसे लोग धन की संभावना तलाश ही
लेते हैं। साधु बनना आसान है, साधु का जीवन निर्वाह करना कठिन। भारतवर्ष मे सदियों से लोग
अध्यात्मिक मार्ग अपनाने के लिए भौतिक जीवन को त्यागते रहे हैं, परंतु उनमें से अधिकांशतः अपने पीछे
छूटे संसार को मुड़-मुड़ कर देखते रहे, पदार्थ का मोह छूट न पाया,
इसलिए
वे कभी वैराग्य के परमानंद को अनुभूत नही कर पाए। आप मुझे ऐसे ही साधु बनने के लिए
प्रेरित कर रहे हैं। यह संभव नही है। ना तो मैं साधु शब्द का अपमान कर सकता हूँ और
ना ही आपकी भाँति भ्रष्टाचार से अर्जित धन का विषपान। रमेश जी, आपको धन का रोग लगा है। आपके लिए जीवन
आय्याशी है, मृत्यु
भय व परमात्मा गौण। आप वर्तमान के कर्मज्ञ भले
और मैं कर्महीन।
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