Wednesday, September 11, 2013

कांग्रेस की राजनीति ग़रीबों के इर्द-गिर्द ही क्यों घूमती है?


रायपुर, सितंबर 11, 2013




राहुल गाँधी कहते हैं कांग्रेस हमेशा से ग़रीबों की लड़ाई लड़ रही है। सही बात है। पिछले साठ वर्षों से कांग्रेस ने ग़रीबों के लिए ऐसी लड़ाई लड़ी कि मध्यम वर्ग के लोग ग़रीब हो गए और ग़रीब बन गए भिखारी। बच गए अमीर - जो कांग्रेसी खाद खाकर और अमीर हो गए। 



परंतु राहुल जी, आपका मंतव्य यह नही है। आप तो दरअसल यह दर्शाना चाहते हैं कि भारतवर्ष मे यदि कोई राजनैतिक दल ग़रीबों का मसीहा है तो वह है कांग्रेस। और यह आप इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आप जानते हैं कि आपके दल ने कभी ग़रीबों को आर्थिक रूप से मजबूत होने नही दिया। तंगहाली और परेशानियों मे जीने वाला ग़रीब आपके दल की झूठी संवेदनाओं मे अपना सुनहरा भविष्य खोजने लगता है और इसी भावावेश मे आपको फिर वोट दे बैठता है। 

राहुल यदि यह कहते हैं कि ग़रीबी एक मानसिकता है तो सत्य कहते हैं। महलों मे रहने वाले लोग ग़रीबी के यथार्थ को कतई स्वीकार नही कर सकते। उनके लिए ग़रीब केवल कहानियों के कमजोर पात्र हैं। इसलिए गंदगी से बजबजाति नालियों के मुहाने जर्जर झोपड़ियों मे रहने वाले चीथड़ों मे लिपटे हुए लोग उनको व्यथित नही करते क्योंकि उनकी सरकार तो इन्हें ग़रीब मानती ही नही। 

राहुल यह भी कहते हैं कि वे आम जनता के सपनो को पूरा करने के लिए अपने सपनों को कुचलने के लिए तैयार हैं। अब उन्हें कौन समझाए कि कांग्रेस राज मे आम जनता को नींद ही नही आती, वह सपने क्या खाक देखेगी। 

दरअसल कांग्रेस राज मे सपने देखने का हक केवल नेहरू-गाँधी परिवार को होता है। इस बात का इतिहास भी साक्षी है। पूर्व मे नेहरू ने अपने सपनों को साकार करने के लिए जनता के सपनों को दरकिनार कर दिया। वरना सरदार पटेल प्रधानमंत्री होते और सुभाष चंद्र बोस भारत आ जाते। फिर इंदिरा की महत्वाकांक्षा, संजय के तेवर, राजीव की अधीरता ने कितनों के सपने कुर्बान किए, कौन जानता है। सोनिया प्रधानमंत्री बनना चाहती थीं, नही बन सकीं। अब हठ तो पूरा करना ही था। इसलिए उन्होने प्रणब जैसे काबिल व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद से वंचित कर मनमोहन को तरजीह दी। कारण साफ था और मंशा एक ही थी - रोबोट को चलाने वाला रिमोट अपने पास रखना। इसलिए आपके मुँह मे ऐसी आदर्शवादी बातें शोभा नही देती। बेहतर है, सत्य बोलिए और कहिए कि आप प्रधानमंत्री बनने का सपने देख रहे हैं और वो भी अपने दल के काबिल दावेदारों के सपनों को कुचलकर।

परंतु राहुल को एक बात ध्यान रखना चाहिए - आम चुनाव मे जनता उनकी तुलना करेगी नरेंद्र मोदी से। यह तुलना होगी अपरिपक्वता व अनुभव की। देश का हाल किसी से छुपा नही है। हमारी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा व्यवस्था पूरी तरह से चौपट हो गई है। केवल ग़रीबी का राग अलापने से कुछ हासिल नही होगा, स्वयं को काबिल साबित करने के लिए सुधारवाद की प्रक्रिया मे अपना योगदान देना होगा। राहुल जी, पहले कुछ उपलब्धि हासिल कर लें फिर उच्च पद की दावेदारी ठोकें, जनता ज़रूर सुनवाई करेगी।

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