September 19, 2013
देश के एकमात्र धर्मनिरपेक्ष नेता आज़म ख़ान जी,
आप तो बड़े छुपे रुस्तम निकले! चुपचाप दंगा भी करा दिया और किसी को पता भी नही चला। भई वाह! यह हुई ना बात - दूसरों पर सांप्रदायिकता के लांछन लगाने वाले आज़म ख़ान स्वयं ही सांप्रदायिक निकले।
अच्छा यह बताएँ, यह खेल कब से चल रहा है? आपने और कितने दंगे करवाए हैं? क्या मुलायम भी आप ही की तरह कठोर हैं? अखिलेश की तालीम कब ख़त्म होगी? जिस प्रदेश के लोगों ने आपके दल को सर-आँखों पर बैठाया, फिर से राज करने का मौका दिया, उनकी बस्ती उजाड़कर आप लोग अब किस प्रदेश का रुख़ करेंगे?
दंगों मे आपका नाम आया नही कि आपने सफाई देना शुरू कर दिया। किससे डरते हैं? गर्व से कहें कि आपने जो किया ठीक किया। दरअसल यही तो आपका दल करते आया है - मुसलमानों से मीठी-मीठी बातें करके उनके और हिंदुओं के बीच दरार पैदा करने का काम।
यदि आपका दल मुसलमानों का इतना ही हिमायती है तो उनके जीवन-स्तर सुधारने के लिए आप लोगों ने इतने वर्षों तक क्या किया? आपके दल से उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश के मुसलमानों को आप देश के सबसे तरक्कीशुदा लोगों मे शामिल करने के लिए प्रयास करते, परंतु आपने उनका उत्थान कभी चाहा ही नही।
वक्त के साथ आपका कद बढ़ता गया, मुसलमान वहीं के वहीं रह गए। जब-जब आप सत्ता से दूर रहे, आपको मुसलमानों की याद सताई, लेकिन सत्ता मे आते ही आपने उन्हें दरकिनार कर दिया।
अब जब आपकी कलाई खुल गई है, तो खीसें निपोरना बंद करें और धर्मनिरपेक्षता का मुखौटा उखाड़ फेंकें। अब चिल्लाते रहें कि केवल आप ही मुसलमानों के ख़ैरख़्वाह हैं, देखें कौन यकीन करता है..
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