Sunday, September 2, 2012

क्या स्वामी रामदेव अपने उद्देश्य से भटक रहे हैं?


स्वामी रामदेव ने जब भ्रष्ट्राचार के विरुद्ध सत्याग्रह का ऐलान किया था तब देश-विदेश से हज़ारों लोगों ने उनका समर्थन किया था. इसका परिणाम यह हुआ की जब वे अनशन पर दिल्ली के रामलीला मैदान पर बैठे तब उनके साथ न केवल आम जनता थी बल्कि अनेकों राजनैतिक पार्टियाँ भी थीं. केंद्र सरकार ने स्वामी रामदेव को मनाने का भरपूर प्रयास किया पर जब वह सफल न हुई तब उसके इशारे पर (यह आरोपित है) दिल्ली पुलिस ने सत्याग्रहियों पर बर्बरतापूर्वक लाठियाँ बरसाईं. स्वामी रामदेव को हरिद्वार लौटना पड़ा जहाँ से उन्होने अपनी भ्रष्ट्राचार विरोधी मुहीम को जारी रखने की घोषणा की.

जनता का समर्थन उनके पास अब भी था. लोग स्वामी रामदेव के आहत होने के दर्द को महसूस कर रहे थे. उन्हें पता था यह अभियान कितना काँटों भरा है. परंतु स्वामी ने जल्दबाज़ी मे अपनी सेना बनाने की बात कह दी. लोग सन्न रह गये. सेना सदैव देश की सुरक्षा के लिए गठित की जाती है और देश के भीतर शांति बहाल रखने की ज़िम्मेदारी पुलिस की होती है. स्वामी रामदेव के मुँह से सेना गठन की बात लोगों को रास नही आई. उन्हें लगा यह विद्रोह का बिगुल है.

भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहीम का अर्थ था देश और समाज से गंदगी निकालने की प्रतिबद्धता परंतु अलग से सेना खड़ी करने का तात्पर्य भी अलग  होता है. स्वामी ने कहा सेना को वे शास्त्र और शस्त्र दोनो मे ही पारंगत करेंगे. लोग चौंक उठे. शस्त्र शिक्षा की क्या आवश्यकता पढ़ गई?

स्वामी का कहना है क़ि सेना अहिंसा के पथ पर चलेगी. वे कहते है शस्त्र विद्या का दुरुपयोग नही किया जाएगा और यह केवल आत्मरक्षा के लिए काम आएगा. परंतु  आत्मरक्षा का मतलब है जवाबी कार्रवाई. यही कार्य तो चरमपंथी भी करते हैं. नक्सली इसके प्रामाणिक उदाहरण हैं.

स्वामी रामदेव जी, कहीं आप सेना गठित करने की बात स्वामी अग्निवेश के बहकावे मे आकर तो नही कह गये. अग्निवेश का नक्सलियों के प्रति सहानुभूति जगजाहिर है. वे कब और कैसे आपको भावनाओं मे बहाकर अपनी बात मनवा लेंगे, आप कल्पना भी नही सकते. अग्निवेश जैसे लोगों से आपको सावधान रहना चाहिए क्योंकि ये आपकी राष्ट्रभक्ति को देशद्रोह मे तब्दील कर सकते है.

अभी तक तो केंद्र सरकार यह कहती रही है कि आपका सत्याग्रह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी के समर्थन से चल रहा है. लेकिन जैसे ही आप सेना का गठन करेंगे, केंद्र अन्य पहलुओं पर गंभीरता से विचार करना प्रारंभ कर देगी.

आप पर यह आरोप लगाया जा सकता है कि आप भोली-भाली जनता को भड़काकर उन्हें राष्ट्र विरोधी गतिविधियों मे शामिल कर रहे हैं. आपकी तुलना नक्सलियों से भी की जा सकती है. हो सकता है आपकी अग्निवेश से नज़दीकियों का केंद्र कोई विशेष अर्थ निकाल ले और आपको नक्सलियों का एजेंट करार दे.

आप पर कई लोगों ने यह भी इल्ज़ाम लगाया है कि आप अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा को साकार करने के लिए भ्रष्टाचार विरोधी सत्याग्रह को तूल दे रहे है. कुछ का कहना है की यह मुहीम अन्ना हज़ारे ने प्रारंभ की थी और उनके तेज को निस्तेज करने के लिए आपने और भी व्यापक स्तर पर इस आंदोलन को चलाने का प्रयास किया.

लोग कहते हैं अन्ना के सहज और साधारण सत्याग्रह की तुलना मे आपने अपने अभियान मे समस्त प्रकार की आधुनिक सुविधाओं का समावेश करने के साथ साथ सत्याग्रह की संपूर्ण गतिविधियों को कैमरे मे क़ैद करने की व्यवस्था की थी ताकि देश-विदेश मे यह बात प्रचारित हो सके कि आप कितने प्रभावशाली हैं.

स्वामीजी, क्यों इतने लांछन मोल लेते है? सीधे सीधे भ्रष्टाचार के विरोध मे अनशन जारी रखें ताकि लोग आपसे जुड़ते जाएँ,  न कि अलग हों. अन्ना ने साफ इशारा कर दिया है कि वे आपकी सेना वाली घोषणा से चकित ही नही बल्कि विस्मित भी हैं. आपने जब योग के साथ साथ भ्रष्टाचार के विरोध मे जनजागरण फैलाने के लिए भारत स्वाभिमान मंच की स्थापना की तो लोगों ने आपके इस निर्णय का स्वागत किया. फिर आपने भ्रष्टाचार के विरोध मे अनशन पर बैठने का निर्णय लिया जिसे लोगों ने पुनः समर्थन दिया.

तो क्या कारण है कि आप इन महत्वपूर्ण उद्धेश्यों मे अपना ध्यान केंद्रित करने के बजाय केंद्र सरकार से लोहा लेने की होड़ मे लग गये? लोग बहुत से कयास लगाएँगे. राजनैतिक पार्टियों की आपके प्रति एक अलग राय बनेगी. जो आपसे सहमत नही होंगे वे आपके विरोध मे बातें करेंगे और अनेकों को प्रभावित भी करेंगे. हो सकता है केंद्र आपको तंग करने की ठान ले और आपको फँसाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाए. तब शायद आप के पास कोई चारा ना हो और आप मजबूरी मे किसी राजनैतिक पार्टी मे शामिल हो जाएँ. भाजपा मे आपके शामिल होने के कयास तो एक अर्से से लगाए जा रहे हैं. फिर आप भी अपने विरोधियों द्वारा संप्रदायवाद को बढ़ावा देने वाले साधु के रूप मे प्रचारित किए जाएँगे.

अतः आपको पग पग मे सावधान रहने की आवश्कता है. वरना केंद्र हो या विपक्ष, कौन कब किस करवट बैठ जाएगा आपको पता नही लगेगा और आप ठगे के ठगे रह जाएँगे.

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