Sunday, September 2, 2012

आम आदमी का मज़ाक


चिदंबरम जी,

आप कहते हैं आम आदमी बोतलबंद पानी और आइसक्रीम खरीदने से नही हिचकता किंतु अनाज के दाम एक रुपये बढ़ने पर हाहाकार मचाता है। क्या आपका आशय यह है कि आम आदमी आइसक्रीम खाकर पेट भरता है और बोतलबंद पानी पीकर प्यास बुझाता है? यदि वह ऐसा करेगा तो अनाज के दामों मे बढ़ोतरी पर चिल्ल-पों क्यों मचाएगा? आप स्वयं ही विरोधाभासी बातें कर रहे हैं, परंतु लगता है जैसे आप अपने बेसिरपैर की कथनी से पूर्णतः अनभिज्ञ हैं।

आप कहते हैं आपने विदेश जाकर अर्थशास्त्र की पढ़ाई की है फिर आप स्वदेश मे इस तरह की अनर्थक बातें क्यों कर रहे हैं? ऐसा प्रतीत होता है जैसे देश की तरह आपकी बुद्धि का विकास दर (growth rate) भी कम होता जा रहा है और मोटाई (inflation) बढ़ती जा रही है। घबराईए मत, यह बीमारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी, योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया  और आपकी पार्टी के अनेक सदस्यों को भी है।

दरअसल सरकारी पैसों पर अय्याशी करते करते आप जैसे नेता यह भूल जाते हैं कि जिस जनता ने आपको गद्दी पर बैठाया है वह अभी भी कंगाल है। आप सोचते हैं जैसे आपके इर्द-गिर्द चाटुकार थालियों मे नोटों की गड्डीयाँ सजाकर आपके मुँह मे ठूँसने के लिए तत्पर रहते हैं, वैसे ही किराना दुकान वाला आम आदमी को दो रुपये का पार्ले जी बिस्कुट खरीदने पर एक बोतलबंद पानी और एक आइसक्रीम मुफ़्त मे देता होगा।
आप लोग आम आदमी के पैसों से देश चलाते हैं और उसी पर धौंस जमाते हैं? हद हो गई बेशर्मी की! आश्चर्य है कि आपको गोदामों मे खुले आसमान के नीचे रखे अनाज बारिश मे सड़ते हुए नज़र नही आते लेकिन आम आदमी के जेब मे रखे हुए एक रुपये को आप अपनी गिद्ध जैसी पैनी दृष्टि से आसानी से देख लेते हैं!

चिदंबरम जी, आपका अहंकार आपके लिए विनाशकारी साबित हो सकता है। यह सत्य है कि करोड़ों आम आदमी जितना जीवन भर कमाते हैं उतना आप जैसे नेता अपनी औलादों के नखरे उठाने मे फूँक देते हैं। आप अनाज की बात करते हैं, आपकी सरकार का बस चले तो आम आदमी से जीवित रहने का कर लेने से भी नही चूकेगी।

आप लोगों ने महँगाई को वेताल की तरह आम आदमी की पीठ पर लाद दिया है। आपने कभी किसी आम आदमी के घर जाकर देखा है? आपको एहसास होगा कि आम आदमी का घर छोटा होता है लेकिन दिल बड़ा। उसकी रसोई भले ही खाली दिखेगी लेकिन आपकी थाली मे उसकी हैसियत से अधिक का भोजन होगा, शुद्ध घी से तर।

आप भले ही आम आदमी के लिए सस्ते अनाज की घोषणा करके अपनी पीठ थपथपाने से बाज़ नहीं आएँगे परंतु वह आपको महँगा और पौष्टिक अनाज खिलाकर भी शालीनता से कहेगा - 'माफ़ कीजिए! भोजन आपके लायक नही था, फिर भी आपने हमारा मान रखा'। अंत मे वह आपको नामी गिरामी कंपनी की बोतलबंद पानी पिलाएगा और उच्च स्तर की आइसक्रीम खिलाएगा। वह यह सब इसलिए करेगा क्योंकि वह मेहमान को भगवान समझता है। उसकी यह समझ उसके संस्कार से आई है।

लेकिन आपके संस्कार को क्या हुआ? जिस आम आदमी ने अपनी किस्मत की लकीर काटकर आपकी किस्मत चमका दी, आप उसी का मज़ाक उड़ा रहे है? आपने तो यह भी जानने की आवश्यकता नही समझी कि आम आदमी को जो अनाज सरकार कम दामों पर उपलब्ध कराती  है वह खाने लायक है या नही। यदि आप लोग संवेदनशील होते तो लाखों गर्भवती महिलाएँ और बच्चे कुपोषित क्यों होते, देश मे इतना अनाज होते हुए भी कोई भूखा क्यों सोता और आपको राजा बनाने वाले खुद भिखारी क्यों होते?
 



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